‘मोदी जी को मैंने पहली बार डिफेंसिव खेलते हुए देखा, और मुझे वो राहुल द्रविड़ नहीं लगे’

२०१४ और २०१९ का सबसे बड़ा कॉमन फैक्टर ये है कि बीजेपी तब भी मोदी और सिर्फ मोदी थी और बीजेपी २०१९ में भी मोदी और सिर्फ मोदी ही होगी।

New Delhi, Jul 23 : वो निरे मूर्ख ही हैं जो अविश्वास प्रस्ताव के गिरने पर खुश हो रहे हैं या इसके पारित होने की उम्मीद लगाए बैठे थे. ये प्रस्ताव सरकार गिराने के लिए थोड़े ही था, इसे गिरना ही था. इसे तो २०१९ के लिए चुनावी मुद्दों की तलाश की दिशा में विपक्ष की ओर से उठाया गया एक कदम मानना चाहिए. साथ ही इस पर हुयी बहस से ये भी अंदाज़ लगाना चाहिए कि सत्ताधारी पार्टी इन मुद्दों से कैसे निपटेगी.

लेकिन इस सब का आकलन करने से पहले २०१४ और २०१९ के बीच कुछ समानताओं और कुछ अंतरों के बारे में स्पष्ट हो लेना चाहिए. २०१४ और २०१९ का सबसे बड़ा कॉमन फैक्टर ये है कि बीजेपी तब भी मोदी और सिर्फ मोदी थी और बीजेपी २०१९ में भी मोदी और सिर्फ मोदी ही होगी. लेकिन तब मोदी जी विपक्ष में थे. हमलावर की मुद्रा में थे. उन्हे कुछ डिफेंड नहीं करना था, बस हमला करना था. विपक्षी पार्टियां उन पर जो तीर फेंक रही थी वो भी बूमरैंग बनकर वापस विपक्षी पार्टियों को ही बींध रहे थे. गुजरात में हुए नरसंहार का हर जिक्र उनके वोट बढ़ा रहा था. उनके पास सीएजी द्वारा बनाया गया टूजी घोटाले का ऐसा हथियार था जो मार भी करता था और मौका पड़ने पर कवच भी बन जाता था. उन पर और उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के कोई संगीन आरोप नहीं थे. इसलिए वो दनदनाते हुए पूरे देश में घूमे. उन्हे कुछ डिफेंड करना ही नहीं था. सिर्फ और सिर्फ हमला करना था, जो उन्होंने बखूबी किया. और जीत गए.

आज स्थिति अलग है. अब वो सरकार में हैं. उन्हें जबाब देने हैं. हम हिन्दुस्तानियों की ये खासियत है कि हम चुनाव में किसी भी नेता से उसके वादों का हिसाब नहीं मांगते. इस दृष्टि से मोदी जी सुरक्षित स्थान पर हैं. पर हम हिन्दुस्तानियों की एक खासियत और भी है. हम ये ज़रूर पूछते हैं कि इन पांच सालों में आपने हमारे लिए क्या किया. अगर आपने कुछ ज़्यादा नहीं किया तो भी ठीक है. लेकिन अगर आपने हम सब के लिए नहीं, उन दो-चार के लिए किया तो हम नाराज़ होते हैं. और अगर आपने इस चक्कर में माल भी काट लिया तो हम बहुत नाराज़ हो जाते हैं.

चलिए अब संसद और अविश्वास प्रस्ताव पर लौटते हैं. मैंने मोदी जी का पूरा भाषण बड़े ध्यान से सुना. सुनना तो राहुल जी का भी चाहता था पर उनकी भाषा ऐसी है कि इर्रिटेट कर देती है. अंग्रेजी में सोचकर कोई हिंदी में बोलेगा तो हम हिंदी वाले इर्रिटेट नहीं तो क्या होंगे. लेकिन उन्होंने जो बोला और मोदी जी ने उसका जो जबाब दिया उस पर तो चर्चा करनी ही चाहिए.
सबसे पहली बात तो ये कि आंध्र के सवाल को छोड़ कर बाकी जो कुछ भी मोदी जी ने बोला वो सिर्फ और सिर्फ राहुल गाँधी के भाषण का जबाब था. विपक्ष की तरफ से कई नेता बोले थे उन्होंने कई मुद्दे उठाये थे, लेकिन मोदी जी ने जबाब दिया सिर्फ राहुल का. अब से पहले ऐसा नहीं होता था. राहुल के सवाल और मोदी जी के जबाब पर कल लिखूंगा. आज सिर्फ इतना लिख रहा हूँ कि मोदी जी को मैंने पहली बार डिफेंसिव खेलते हुए देखा- और मुझे वो राहुल द्रविड़ नहीं लगे.

(वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)