हिंदु पाकिस्तान बनाम हिंदुत्व बनाम हिंदु इंडिया…

पिछले कुछ सालों में हिंदुत्व के तांडव के जो मंज़र हमारे सामने पेश आया है उसमें लिंचिंग, माइनॉरिटी और दलित हंटिंग आम हो चली है और जिसको लेकर मोदी सरकार भीष्म चुप्पी साधे रहती है ।

New Delhi, Jul 15 : दरअसल, भारत में पाकिस्तान शब्द को लेकर ही एक निहायत ही परिचित सी चिढ़ है। और उससे जुड़ी सभी चीज़ों से। और ये चिढ़ बड़ी सेक्यूलर किस्म की है। इसलिए जब आडवाणी पाकिस्तान की सरज़मीं पर खड़े होकर और जिन्नाह की मज़ार पर जिन्नाह को हिंदु-मुस्लिम एकता का ऐंबेसेडर घोषित करके भारत लौटते हैं तो भारत के तमाम लोगों की दृष्टि में हिंदुस्तान को हमेशा हिंदु-स्थान बोलने वाला हिंदु-हृदय सम्राट २.० अचानक विलेन हो जाता है। यहां तक की उनकी अपनी पार्टी और परिवार उनसे कन्नी काट लेते हैं। उसी दिन से आडवाणी के बुरे दिन शुरू हो जाते हैं। शशि थरूर ने भी अपने बयान में पाकिस्तान शब्द जोड़ा है। और वो भी हिंदु शब्द के साथ। हिंदुत्व-ताइयों ( ये शब्द आतताई शब्द का कज़िन नहीं है, महज़ एक दूसरे से प्रोफेशनल जान-पहचान है ) का बस चले तो वो हिंदु शब्द बोलने का अधिकार भी सिर्फ हिंदुत्व-ताइयों को ही दें। तो ये शब्द गर कोई गै़र हिंदुत्व-ताई बोलता है वो उसे सिक्यूलर घोषित कर देते हैं। दिन-दहाड़े वो ऐंटी नेशनल कहलाया जाता है। इसलिये थरूर को चौतरफा भर्त्सना के लिये तैयार रहना चाहिये।

हांलाकि थरूर अपने शब्दों का बेहतर उपयोग कर सकते थे। हिंदु पाकिस्तान से उनका क्या मतलब है। बीजेपी भारत को हिंदु पाकिस्तान बनाना चाहती है। तो क्या आज वो ये मानते हैं कि कांग्रेस ने हिंदु इंडिया की नींव रखी। और उसे वैसे ही सींचा। आज़ादी के पहले और आज़ादी के बाद। वैसे इतिहास तो हमें जगह जगह इस ओर इशारा करता है। कई स्रोतों से प्रमाण भी देता है। यानि ये देश कांग्रेस के ज़माने में अपर कास्ट, मनुवादी हिंदु इंडिया था जिसे कांग्रेस ने बाहर से सेक्यूलर आवरण पहनाया और जिसे बीजेपी अब हिंदु पाकिस्तान बनाने पर तुली हुई है। यानि हिंदु इंडिया पर थरूर को कोई आपत्ति नहीं। भले ही जिसमें अनेक धर्म, समुदाय वाले लोग रहते हों और जो संविधान की नज़रों में बराबर हों मगर जिसे थरूर गर्व से हिंदु इंडिया कह सकें। यानि कांग्रेस की सेक्यूलर छवि महज़ एक ढोंग है। और थी। ठीक है। हम ये मान लेते हैं और थरूर का साधुवाद करते हैं कि किसी कांग्रेसी ने तो हिम्मत दिखाई और इस आवरण को झटक हमें सच्चाई से रू-ब-रू करवाया।

लेकिन हिंदु इंडिया कहने से भी थरूर घबराते हैं। क्योंकि इसके दायरे में खुद उन्ही की पार्टी को तरकश के सभी तीरों का सामना करना पड़ेगा। अपने जनेऊधारी पार्टी अध्यक्ष की सनातन धर्म की रोशनी में थरूर को अपनी नई किताब के टाइटिल के लिये बहुत ज्यादा मगज़मारी नहीं करनी पड़ेगी। Why I am a Hindu के बाद उनकी इस श्रंखला की अगली किताब होनी चाहिये – Why I Want a Hindu India and Not Hindu Pakistan – A journey into the politics of Congress
तस्वीर का दूसरा रूख ये भी है कि थरूर को कोस लेने भर से हिंदु पाकिस्तान के डिबेट को हम सही नहीं हांक रहे। उनके शब्दों के चयन की भर्त्सना की जा सकती है। मोदी-शाह की तर्ज पर थरूर की जुमलेबाज़ी की कोशिश काबिले-तारीफ है। लेकिन मोदी-शाह के जुमलों की जग हंसाई भी हुई। सोशल मीडिया पर तमाम मीम वायरल हैं। तो क्या ये भी हो सकता है कि दरअसल थरूर हिंदुत्वताई शक्तियों को निशाने पर ले रहे थे। जो कि साफ भी है क्योंकि सबसे ज्यादा मिर्च तो भाजपाइयों और भक्तों को ही लगी है।

पिछले कुछ सालों में हिंदुत्व के तांडव के जो मंज़र हमारे सामने पेश आया है उसमें लिंचिंग, माइनॉरिटी और दलित हंटिंग आम हो चली है और जिसको लेकर मोदी सरकार भीष्म चुप्पी साधे रहती है । इस परिदृश्य में हिंदु पाकिस्तान जैसे शब्द एक अजीब सा कौतहूल पैदा करते हैं। हिंदु है तो पाकिस्तान क्यों कहा। पाकिस्तान कहना चाहता था तो हिंदु से क्यों जोड़ा। यानि ये हिंदुओं को दुश्मन देश पाकिस्तान के बरक्स खड़ा कर रहा जो कि इस्लामिक देश है।
करीब दो साल पहले मशहूर इतिहासकार इरफान हबीब ने भी कुछ इसी तर्ज़ पर बयान दिया था जिसे यहां दोहराना उचित नहीं होगा। वैसे हबीब कुछ भी बोलते तो ट्रोल उन्हें नहीं बख्शते लेकिन उनका बयान सरकारी गलियारे से गूंजता हुआ जब सोशल मीडिया की गलियों से गुज़रा तो हिंदुत्व-ताई अखाड़ों के भक्तों ने हबीब को वहीं धर दबोचा।

सोशल मीडिया के इसी दौर में थरूर अपने पार्टी प्रेसिडेंट राहुल गांधी से भी दस कदम आगे चलते हुए इस प्लेटफार्म पर चल रहे डिबेट का हिस्सा बनने की लगातार कोशिश करते हैं। ये भी सही है कि वो लगभग हर टॉपिक पर अपनी राय रखते हैं। जुमलेबाज़ी से भी वो नहीं हिचकिचाते। उनके पार्टी प्रेसिडेंट की राय हमें उनके भारत भ्रमण के बाद या ननिहाल से लौटने पर भी सुनने को नहीं मिलती। इसलिये थरूर जो भी बोल रहे उससे कम से कम उनकी पार्टी को पब्लिसिटी ज़रूर मिल रही। निगेटिव पब्लिसिटी भी पब्लिसिटी तो होती ही है। ये हो सकता है कि थरूर के इस बयान के लिये उनकी पार्टी उन्हे डांटे, फटकारे। ये भी हो सकता है कि पार्टी थरूर के इस बयान से खुद को अलग कर ले या मौन रह जाये। क्योंकि पार्टी के पास फिलहाल आगे बढने की कोई सहज दिशा नहीं दिखती। एक ज़माने में संघ परिवार और बीजेपी का हिडेन एजेंडा हुआ करता था जिसे मोदी ने शीशे की तरह हिंदुस्तानियों को साफ-साफ दिखा दिया और हमारा बचा-खुचा भ्रम ( जो वाजपेयी के ज़माने में हमने गल्ती से पाला था ) भी तोड़ दिया। मोदी राज में हिंदु राष्ट्र की आशंकाएं अब और प्रबल होकर चुनौती दे रहीं।

कांग्रेस का एजेंडा क्या है। इस सवाल का जवाब हमें खोजने पर भी नहीं मिलता। दरअसल ये जवाब कांग्रेस को भी नहीं मालूम। सेक्यूलरिज्‍म का ढोंग रचते रचते यहां तक पहुंच गये कि अपने हिंदु होने की पहचान जनेऊ के हवाले से बता रहे। किसे? हिंदु इंडिया को। और ये ज़रूरत क्यों पड़ी। बीते सालों में ऐसा क्या हुआ जो कांग्रेस की अपनी ज़मीन ही दरक गई।
राहुल गांधी को डाइनेस्टी नामक नांव तो मिल गई लेकिन सामने हिमखंड है और पतवार हाथ में है नहीं। ऑप्शन्स की किल्लत है। उधर मोदी-शाह के पास ऑप्शन्स का सागर है। ये अलग बात है कि इस सागर में गोते लगाते लगाते कभी अच्छे अच्छे नाविकों को भी लहरें लील जाती हैं। लेकिन बीजेपी के पास ऑप्शन्स तो हैं। तिकड़मों का जंजाल फैलाने का हुनर तो हैं। जनता को नाहक गैर-ज़रूरी मुद्दों में उलझाये रखने के दांव तो हैं। राहुल के पास क्या है। एक बिन पतवार के १८८५ में बनी नाव। पतवार तो चाहिये न। और साथ ही लहरों को चीरने का हुनर भी। सही मुद्दों को भुनाने की न तो गर्मजोशी दिखती है न कहीं तक पहुंचने की लालसा। शिव भक्ती के दावे भर से तो नांव चलेगी नहीं। और चलेगी तो जाना किधर है ये कौन तय करेगा। बीजेपी को अपने हिंदु-स्थान की मंज़िल कै लैटिट्यूड, लॉंगिट्यूड सब पता है।

इस लिहाज़ से थरूर को कोसना तर्क संगत नहीं होगा। केरल में पिछले सालों दक्षिणपंथी ताकतों ने काफी ज़ोर आज़माया है। ऐसे में अपनी कॉंस्टिट्यूएन्सी को बचाये रखने के लिये थरूर का ये राजनीतिक दांव कोई बुरा नहीं। उनके वोटर अल्पसंख्यक वर्ग से भी हैं। वैसे भी थरूर ने कुछ नया नहीं बोला। एक दबे सुर को राजनीतिक पटल पर उछाला है। उनका ये बयान मणि शंकर अय्यर के चाय वाले बयान सा बचकाना नहीं है। और अगर है भी तो उनकी पार्टी यानि कांग्रेस न तो अय्यर की वजह से हारी थी न इस बार थरूर उसकी लुटिया डुबोयेंगे।
ट्विटर पर राहुल गांधी का हैंडल आप भले मिस कर जायें थरूर के बयान नज़रअंदाज़ करना मुश्किल है। ये बयान देकर थरूर ने राजनीतिक रिस्क लिया है। इससे फायदा या नुकसान दोनो हो सकता है। उन्हे भी और पार्टी को भी। फायदा हुआ तो ठीक है। नुकसान हुआ तो थरूर का ज्यादा होगा। राहुल तो ये कह कर कन्नी काट सकते हैं कि नाव पुरानी थी, पतवार हाथ में थे नहीं। या फिर ये कह कर भी पल्ला झाड़ लेंगे कि गलत लोगों को नाव से पानी निकालने के काम में लगाया जो नाव का पानी समुद्र में नहीं बल्कि समुद्र का पानी नाव में उड़ेल रहे थे। वो कह सकते हैं कि इसलिये हम किनारे खड़े होकर लहर गिनते रहे। कम से कम नाव डूबी तो नहीं।
इन सब बयानों, विवादों और हिंदु-बनाम हिंदुत्वादी या हिंदु इंडिया बनाम हिंदु पाकिस्तान के मंथन के बाद जो निकल रहा उसमे अमृत तो कतई गायब है। इसलिये कुल मिला कर २०१९ में भी आम वोटर के पास ऑप्शन्स लिमिटेड होंगे। ऐसे में वो हिंदु इंडिया और हिंदु पाकिस्तान के बीच झूलते हुए ही मिलेगा।

(वरिष्ठ पत्रकार प्रभात शुंगलू के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)