इस सीट से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं प्रशांत किशोर, नीतीश कुमार ने खेला है बड़ा दांव

नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को पार्टी में शामिल कराते हुए, उन्हें जदयू का भविष्य बताया। जिसके बाद से इसके राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं।

New Delhi, Sep 19 : जदयू का दामन थामने वाले प्रशांत किशोर को पार्टी लोकसभा चुनाव में उतार सकती है, सूत्रों का दावा है कि उन्हें उनके गृह नगर बक्सर सीट से मौका दिया जा सकता है। चुनाव से ठीक पहले जदयू में जिन कारणों से पीके की एंट्री हुई है, उसमें एक कारण ये भी है कि वो सक्रिय राजनीति का हिस्सा बनना चाहते हैं। प्रशांत किशोर मूल रुप से रोहतास जिले के रहने वाले हैं लेकिन उनके माता-पिता बक्सर में ही रहते थे, जिसकी वजह से उनका बचपन यहां गुजरा है।

बक्सर सीट से दावेदारी
ब्राह्मण जाति से आने वाले प्रशांत किशोर की बक्सर सीट से दावेदारी इसलिये भी मानी जा रही है, क्योंकि यहां के वर्तमान बीजेपी सांसद अश्विनी चौबे ने इस सीट को छोड़ने के पहले ही संकेत दे दिये हैं, कहा जा रहा है कि गठबंधन में ये सीट जदयू के खाते में जाना तय है, बक्सर सीट से जदयू के लिये प्रशांत किशोर सबसे योग्य चेहरा माने जा रहे हैं, अगर उन्हें इस सीट से चुनावी मैदान में उतारा जाता है, तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिये।

सवर्ण वोटर बाहुल्य क्षेत्र
आपको बता दें कि बक्सर सवर्ण वोटर बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है, यहां बाह्मण वोटरों की संख्या अच्छी खासी है, शायद यही वजह है कि इस सीट से लोकसभा और विधानसभा चुनाव में पार्टियां बाह्मण या सवर्ण को ही उम्मीदवार बनाती है। 2014 लोकसभा चुनाव में अश्विनी चौबे ने जगदानंद सिंह को हराया था, इस बार भी कहा जा रहा है कि पीके और जगदानंद सिंह के बीच टक्कर हो सकती है, क्योंकि महागठबंधन से उन्हें भी टिकट मिलना लगभग तय है।

पार्टी में नंबर दो
नीतीश कुमार ने पीके को पार्टी में शामिल कराते हुए, उन्हें जदयू का भविष्य बताया। जिसके बाद से इसके राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि नीतीश ने एक तरह से उन्हें अपना राजनैतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है। नीतीश कुमार और पीके के बीच अच्छी बांडिंग हैं, पीके के किसी बात को सुशासन बाबू नहीं काटते हैं, वो जिस सीट से कहेंगे, शायद उन्हें उसी सीट से टिकट मिल जाए।

पीके के जरिये बड़ा दांव
नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर के जरिये बड़ा दांव खेलने की कोशिश की है। दरअसल राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि शरद यादव के अलग होने के बाद पार्टी अब पूरी तरह से नीतीश पर निर्भर हो गई है, दूसरी पंक्ति के नेताओं में वशिष्ठ नारायण सिंह, केसी त्यागी, आरसीपी सिंह और ललन सिंह की गिनती होती है। इनमें से कोई भी 40 के आस-पास नहीं है, नीतीश अगली पीढी के नेताओं को सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं, इसके साथ ही विधानसभा चुनाव में तेजस्वी बनाम पीके होगा, एक तरफ वंशवाद, जातिवाद तो दूसरी ओर काबिलियत, क्षमता और कार्य-कुशलता होगा।