वामपंथियों का सबसे बड़ा देशद्रोही कांड था “कश्मीर षड़यंत्र”

आज़ादी के बाद 1948 में जब कश्मीर अस्थिरता के दौर से गुज़र रहा था तो वामपंथियों ने कश्मीर पर कब्जे का प्लान बनाया था।

New Delhi, Sep 05 : राष्ट्रवाद के दुश्मन “शहरी नक्सलियों” यानि “टुकड़ा-टुकड़ा गैंग” ने हर समय इस राष्ट्र को तोड़ने का षड़यंत्र रचा है… ज़रा सोचिए… वामपंथी विचारधारा पर चलने वाले पंडित नेहरू की सरकार के खिलाफ ये षड़यंत्र करने से नहीं चूके तो भारत की वर्तमान सरकार को “शहरी नक्सली” कैसे छोड़ सकते हैं ? वैसे वामपंथियों का सबसे बड़ा देशद्रोही कांड था “कश्मीर षड़यंत्र”…
– आज़ादी के बाद 1948 में जब कश्मीर अस्थिरता के दौर से गुज़र रहा था तो वामपंथियों ने कश्मीर पर कब्जे का प्लान बनाया था, जिससे सोवियत संघ कश्मीर के रास्ते भारत में दाखिल हो सके।

सोवियत संघ में उस समय खूनी तानाशाह कॉमरेड स्टालिन की हुकूमत थी। स्टालिन ने भारत की आज़ादी को मानने से इंकार कर दिया था। उसका कहना था कि भारत में बर्जुआ सरकार है और जबतक यहां क्रांति नहीं होती भारत तब तक गुलाम है। जब “बाप” ये सोचेगा तो उसका “बेटा” भी यही सोचेगा। लिहाजा भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ने भी ये माना कि नेहरू की सरकार बर्जुआ सरकार है और नारा दिया “लाल किले पर लाल निशान, मांग रहा है हिंदुस्तान”… यानि भारत में क्रांति के जरिए तख्तापलट करके चरखे वाले तिरंगे की बजाय हंसिए और हथौड़े वाला लाल झंडा फहराना है।
– ये तभी हो सकता था जब यहां के वामपंथियों को सोवियत संघ से मदद मिलती… लिहाजा इसके लिए उस समय के “शहरी नक्सलियों” ने कश्मीर और उसके मुखिया शेख अब्दुल्ला को चुना… 1946 जब शेख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस ने महाराजा हरि सिंह के खिलाफ “कश्मीर छोड़ो” आंदोलन चलाया था उसी समय कई वामपंथी उनके साथ जुड़ गए थे… ठीक उसी तर्ज पर जैसे आजादी से पहले “दत्त-बैडले थ्योरी” (इसके बारे में मैंने #Prakhar_Shrivastava पिछली पोस्ट में लिखा है) के तहत कई कम्युनिस्ट कांग्रेस में दाखिल हो गए थे। खैर… कश्मीर के इन सबसे प्रभावी वामपंथियों में थे जीएम सादिक… सत्ता मिलने पर शेख अब्दुल्ला ने उन्हे अपनी सरकार में होम गार्ड्स डिपार्टमेंट दिया। सादिक कट्टर कम्युनिस्ट थे और उस दौर में उनकी सोवियत यात्राओं पर अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की नज़र रहती थी।

उधर मार्च 1948 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की दूसरी बैठक में जिसे 2nd Congress of the Communist Party of India कहा जाता है में ये तय हुआ कि जिस तरह से पार्टी ने तेलंगाना में सशस्त्र क्रांति की शुरुआत की है वैसा ही कुछ कश्मीर में किया जाए। ये रिकॉर्ड में है कि कॉमरेड भवानी सेन ने कहा था कि तेलंगाना फार्मुले को भारतीय उपमहाद्वीप में दोहराया जाना चाहिए और ऐसी खुफिया रिपोर्ट थी कि इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई थी कॉमरेड सज्जाद ज़हीर को। ये वहीं सज्जाद ज़हीर हैं जो बाद में पाकिस्तान कम्युनिस्ट पार्टी के फाउंडर महासचिव बने। पाकिस्तान में भी इन्होने सोवियत संघ के इशारे पर 1951 में प्रधानमंत्री लियाकत अली की सरकार को गिराने के लिए षड़यंत्र रचा जिसे “रावलपिंडी षड़यंत्र केस” के नाम से जाना जाता है। बाद में ये सज्जाद ज़हीर वापस भारत आकर बस गए और यहां विदेशी तेल से वामपंथ की मशाल जलाते रहे।

– कम्युनिस्ट गुरिल्ला युद्ध के ज़रिए कश्मीर पर कब्ज़ा करना चाहते हैं इसकी पहली भनक मिली आईबी के तत्कालीन डायरेक्टर टीजी संजीवनी पिल्लई को उन्होने तत्काल पीएम नेहरू को इस बारे आगाह करते हुए एक पत्र लिखा। जो नेशनल अर्काइव में आज भी मौजूद है।
– पंडित नेहरू को जब वामपंथियों के इस षड़यंत्र की जानकारी हुई तो उन्होने शेख अब्दुल्ला को 4 जून 1948 को एक पत्र लिखा… जिसमें नेहरू लिखते हैं “मुझे कश्मीर में वामपंथियों की घुसपैठ की जानकारी है… भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जिस तरह से पिछले एक साल में व्यवहार कर रही है वो कम्युनिस्ट सिद्धांतों के खिलाफ है… वामपंथियों के इस कदम (नेहरू का इशारा कश्मीर में वामपंथियो के षड़यंत्र से है) से भारत बर्बाद हो जाएगा… उनकी इस हरकत से भारत में एक बार फिर विदेशी सत्ता (नेहरू का इशारा सोवियत संघ और स्टालिन से है) स्थापित हो सकती है… वामपंथियों को ये समझ में नहीं आता कि जिसे भारत से जरा भी प्यार है वो ऐसा कदम नहीं उठाएगा… जैसा कि आप (शेख अब्दुल्ला) जानते हैं मुझे वामपंथ से नफरत नहीं है लेकिन वर्तमान में वामपंथियों के नीति भारत के लिए खतरनाक हैं”

– सितंबर 1948 की ब्रिटिश हाईकमीशन की खुफिया रिपोर्ट में ये जानकारी दी गई थी कि भारत और पाकिस्तान के कम्युनिस्ट मिलकर सोवियत संघ के इशारे पर कश्मीर को एक आज़ाद राष्ट्र बनाना चाहते हैं। इसके कुछ दिन बाद भारत की खुफिया एजेंसी आईबी ने 30 दिसंबर 1948 को नेहरू सरकार को ये जानकारी दी कि जीएम सादिक जैसे कम्युनिस्ट नेता के हाथ में हथियारबंद होम गार्डस की कमान है और वो शेख सरकार का तख्तापलट कर सकते हैं। ये जानकारी शेख अब्दुल्ला को होने के बाद उन्होने जीएम सादिक से होम गार्डस विभाग छीन लिया और कश्मीर वामपंथी षड़यंत्र का शिकार होने से बच गया।

– आखिरकार वामपंथी क्यों सोवियत संघ और स्टालिन के इशारे पर कश्मीर पर कब्ज़ा करना चाहते थे ??? इसकी वजह है कश्मीर की लोकेशन… इसकी सीमाएं (अगर पीओके को भी शामिल कर लिया जाए) सोवियत संघ से लगती थीं… वामपंथी सोचते थे कि कश्मीर पर कब्जा करने के बाद स्टालिन की रेड आर्मी वहां से भारत में दाखिल हो सकती थी… जैसे हंगरी, रुमानिया, चेकोस्लोवाकिया, बुल्गारिया और ऑस्ट्रिया में हुआ था… इन देशों की कम्युनिस्ट पार्टियों ने पहले तो सोवियत संघ के इशारे पर बगावत की शुरुआत की और फिर “साम्यवाद खतरे में है” का नारा लगाते हुए सोवियत टैंक इन देशों में दाखिल हो गए… लेकिन यहां भारत में “लाल किले में लाल निशान” का ये लाल सपना कभी पूरा नहीं हो पाया।

– 1951 में नेहरू सोवियत संघ के तानाशाह स्टालिन को मनाने में कामयाब हो गए और उसने भारत की आज़ादी को मान्यता दे दी… अपने “पिता” स्टालिन के नक्शे कदम चलते हुए भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ने इसी साल यानि 1951 में भारत की आजादी को स्वीकार कर लिया जिसे उसने 1948 में हुए अपनी 2nd Congress of the Communist Party of India में “Sham Independence” यानि “झूठी आज़ादी” कहा था।
– इतिहास के ये तथ्य बताते हैं कि वामपंथी विचारधारा वाले “शहरी नक्सली” यानि “टुकड़ा-टुकड़ा गैंग” हमेशा से भारत देश के खिलाफ षड़यंत्र करते रहे हैं… चाहे वो वामपंथी सोच वाले नेहरू की सरकार हो या मोदी की सरकार… लेकिन सोचिए… ये कैसी विडंबना है कि नेहरू के दौर में जिन “शहरी नक्सलियों” को राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने का आरोपी माना गया था उनके अंदर आज बुद्धिजीवियो को freedom of speech नज़र आती है।

(वरिष्ठ पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)