‘“रुदाली गैंग” को ये पता नहीं है कि ना अटल जी मोदी से अलग हैं और ना मोदी अटल जी से अलग हैं’

अटल जी का राजधर्म इस सच्चाई को जानता था कि गुजरात के दंगे कभी नहीं होते, अगर गोधरा में रामसेवकों और आम हिंदुओं से भरी साबरमती एक्सप्रेस में आग नहीं लगाई जाती।

New Delhi, Aug 19 : इस देश के तथाकथित बुद्धिजीवी “रुदाली गैंग” की तरह हैं (रुदाली – यानि वो लोग जो किसी के यहां मौत होने पर पैसे लेकर रोते हैं)। इस “रुदाली गैंग” को पीएम मोदी को कोसने के लिए हमेशा शवों की तलाश रहती है, इस बार इस “रुदाली गैंग” ने अटल जी की पवित्र चिता पर “मोदी विरोध” की रोटी सेंकी है। अटल जी के नाम पर ये मोदी को राजधर्म का पाठ पढ़ा रहे हैं। अटल जी को उदारवादी बता रहे हैं और मोदी को असहिष्णु, अटल जी को धर्मनिरपेक्ष बता रहे हैं और मोदी को कट्टरपंथी, अटल जी को लोकतांत्रिक बता रहे हैं और मोदी को तानाशाह। लेकिन इस “रुदाली गैंग” को ये पता नहीं है कि ना अटल जी मोदी से अलग हैं और ना मोदी अटल जी से अलग हैं।

ये अटल जी ही थे जिन्होने बाबरी मस्जिद को गिराने से एक दिन पहले 5 दिसंबर 1992 को कहा था कि “राम जन्म भूमि पर नुकीले पत्थर हैं, इसीलिए ज़मीन समतल करनी होगी”। यहां पूरा भाषण लिखने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि ये भाषण पिछले दो दिन में बहुत शेयर हो चुका है। खैर अगले दिन अयोध्या में क्या हुआ सबको पता है। ये अटल जी थे जिन्होने गुजरात दंगों के दौरान मोदी को राजधर्म का पाठ पढ़ाया, लेकिन जैसे ही उन्हे बीच में टोककर मोदी ने कहा कि “साहब, हम भी तो वही कर रहे हैं”। तो अटल जी ने तत्काल कहा “मुझे विश्वास है कि नरेंद्र भाई यही करने की कोशिश कर रहे हैं”। राजधर्म की सीख देने वाले अटल जी चाहते तो मोदी को मुख्यमंत्री की गद्दी से उतार सकते थे।

लेकिन उन्होने ऐसा नहीं किया, क्योंकि अटल जी का राजधर्म इस सच्चाई को जानता था कि गुजरात के दंगे कभी नहीं होते, अगर गोधरा में रामसेवकों और आम हिंदुओं से भरी साबरमती एक्सप्रेस में आग नहीं लगाई जाती, जिसमें 59 बेगुनाहों की जान चली गई थी। दरअसल गुजरात के दंगे “मुस्लिम एक्शन” का “हिंदू रिएक्शन” था। ठीक उसी तरह जैसे राजीव गांधी ने इंदिरा जी की हत्या के बाद हुए सिख विरोधी दंगों के लिए कहा था कि “जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो हलचल तो होती ही है”। अब अटल जी की कविता “हिंदू तन मन, हिंदू जीवन” की कुछ पंक्तियों पर ध्यान दीजिए। इस कविता में अटल जी ने एक जगह लिखा है “अकबर के पुत्रों”… इसका मतलब किनसे हैं ये सब जानते हैं… इस कविता में अटल जी ने मुस्लिम आक्रमणकारियों और धर्मांतरण की धज्जियां उड़ाई हैं, हिंदुओं को श्रेष्ठ बताया है, इस कविता में हिन्दू धर्म की सहिष्णुता है तो धमकी का भी लहजा है… इन पंक्तियों को पढ़िए…

मै वीरपुत्र मेरी जननी के जगती मे जौहर अपार
“अकबर के पुत्रों” से पूछो क्या याद उन्हे मीना बज़ार
क्या याद उन्हे चित्तोड दुर्ग मे जलनेवाली आग प्रखर
जब हाय सहस्त्रो माताए तिल तिल कर जल कर हो गई अमर
वह बुझनेवाली आग नही रग रग मे उसे समाए हूं
यदि कभी अचानक फूट पडे विप्लव लेकर तो क्या विस्मय
गोपाल राम के नामों पर कब मैने अत्याचार किया
कब दुनिया को हिन्दु करने घर घर मे नरसंहार किया
कोई बतलाए काबुल मे जाकर कितनी मस्जिद तोडी
भूभाग नही शत शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

दरअसल अटल जी हों या मोदी… दोनों एक ही विचारधारा के अनुयायी हैं… और ये दोनों ही क्यों श्यामा प्रसाद मुखर्जी से लेकर दीन दयाल उपाध्याय तक और आडवाणी से लेकर अमित शाह तक सबकी विचारधारा एक थी और एक रहेगी…
लोग आते रहेंगे, जाते रहेंगे… लेकिन प्रखर राष्ट्रवाद का सपना पूरा करने वाले लोग हर हर दौर में मौजूद रहेंगे… आप राष्ट्रवाद की विचारधारा से सहमत हों या ना हों… लेकिन इस सत्य को स्वीकार करना ही होगा ये विचारधारा अगर आज देश पर राज कर रही है तो कुछ तो इसमें बात होगी… जो दूसरों में नहीं है… विरोध करो, लेकिन सच्चाई को भी परखने की कोशिश करना चाहिए…

आखिर क्यों वामपंथी विचारधारा ने सिर्फ 90 साल में ही भारत में दम तोड़ दिया… जबकि भारत में आरएसएस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का गठन एक साथ हुआ था… अटल जी की मृत्यु से तीन दिन पहले वामपंथी नेता सोमनाथ दा की अंतिम इच्छा के अनुसार उनके शव को वामपंथी झंडे में नहीं लपेटा गया। क्योंकि जीवन के अंतिम दिनों में उनका भ्रम टूट गया था, वो भ्रम जिसकी झूठी वकालत वो पूरी ज़िंदगी करते रहे… लेकिन अटल जी की मृत्यु शैय्या पर उनकी विचारधारा के चिन्ह चमक रहे थे… और आगे भी चमकते रहेंगे… सड़ी गली वामपंथी विचारधारा विदेशी धरती से उधार ली गई, जिसे इस देश ने ही नहीं बल्कि सारी दुनिया ने नकार कर फेंक दिया… लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के राष्ट्रवाद की विचारधारा हमारी सनातन संस्कृति से पैदा हुई है और ये हमेशा अमर रहेगी…

(वरिष्ठ पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)