नीतीश पर आरजेडी -कांग्रेस आमने-सामने, एक ने कहा नो इंट्री, तो दूसरा वेलकम करने को तैयार

जिस नीतीश कुमार के नेतृत्व में दोनों भाइयों ने राजकाज के गुर सीखे ,काश, उनसे थोड़ा शिष्टाचार भी सीख लेते !

New Delhi, Jul 03 : एक कहावत है- रुई न कपास और जुलाहों में लठ्ठम लठ्ठा। यही स्थिति इन दिनों नीतीश कुमार को लेकर आरजेडी और कांग्रेस के बीच हो गई है। दोनों पार्टियां बिहार में सहयोगी दल हैं। बीच में कुछ समय के लिए नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू भी कांग्रेस -आरजेडी के महागठबंधन का हिस्सा बनी थी। लेकिन जल्दी ही उनका याराना ख़त्म हो गया। अब उनके फिर से महागठबंधन में शामिल होने के काल्पनिक सवाल को लेकर कांग्रेस और आरजेडी आमने -सामने आ खड़े हुए हैं।

अब तक नीतीश कुमार का महागठबंधन में प्रवेश (?) रोकने के लिए तेजस्वी यादव एकतरफा झंडा उठाये हुए थे। नीतीश कुमार फिर से महागठबंधन में आना चाहते हैं ,यह सूचना उन्हें कहां से और कैसे मिली यह तो वही जानें , लेकिन अपने तेवर और ताबड़तोड़ दिये गये बयानों से तेजस्वी ने यह आभास कराने का भरपूर प्रयास किया मानों नीतीश उनके दरवाजे पर खड़े हैं और वे उन्हें अंदर नहीं आने दे रहे ! छोटे भाई की देखा देखी बड़े भाई तेज प्रताप यादव भी जोश में आ गए दिख रहे हैं।
नीतीश कुमार भद्र पुरुष हैं। शालीनता से अपनी बात कहते हैं। शिष्टाचार निभाने में कंजूसी नहीं करते। इसी शिष्टाचार के नाते उन्होंने मुंबई के  अस्पताल में भर्ती लालू प्रसाद से फोन पर उनका कुशल क्षेम पूछ लिया। यह सामान्य सी बात थी।

वर्षों तक दोनों नेताओं ने साथ -साथ राजनीति की है। कई सुख -दुख के साथ साक्षी रहे हैं। राजनीतिक रूप से आज अलग हैं। इसका मतलब यह तो नहीं कि हालचाल तक पूछने तक से गुरेज किया जाये ? दुआ -सलाम तक न हो ? यही सामान्य सा शिष्टाचार निभाना नीतीश के लिए मानो गुनाह हो गया। तेजस्वी ने छूटते ही बयान दाग दिया कि -हालचाल पूछने का यह मतलब नहीं कि चचा को महागठबंधन में इंट्री मिल जायेगी। इससे मिलते जुलते कई बयान उन्होंने दे डाले। अभी भी चुप नहीं हैं। फिर उनके बड़े भाई तेजप्रताप ने एक कदम आगे बढ़कर कहा -10, सर्कुलर रोड के आगे चाचा के लिए नो इंट्री का बोर्ड लगेगा।

जिस नीतीश कुमार के नेतृत्व में दोनों भाइयों ने राजकाज के गुर सीखे ,काश, उनसे थोड़ा शिष्टाचार भी सीख लेते ! तमाम कटुता के बाद भी इसी शिष्टाचार के नाते नीतीश तेजप्रताप की शादी में भी पहुंचे थे। जबकि उनके महागठबंधन के सहयोगी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने यह सामान्य शिष्टाचार भी निभाना जरुरी नहीं समझा। फिर भी गांधी परिवार के प्रति लालू परिवार के समर्पण में कोई कमी नहीं दिखती। नीतीश के आगे दोनों भाई अभी सचमुच बच्चे हैं। न सिर्फ उम्र में बल्कि शिक्षा -दीक्षा, राजनीतिक विरासत  और अनुभव में भी। उन्हें यह समझना होगा कि वे पिता की विरासत पर राजनीति कर रहे हैं। न उनकी अपनी कोई हैसियत है ,न योग्यता। उन्हें अभी अपनी जगह बनानी है। लोगों का विश्वास अर्जित करना है। लेकिन उसका यह तरीका नहीं है।

इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस अबतक चुप थी। लेकिन अब वह नीतीश के पक्ष में उठ खड़ी हुई है। कांग्रेस के दो विधायकों सुदर्शन कुमार और तौसिफ आलम ने खुल कर नीतीश की तारीफ की है। उन्होंने कहा है -नीतीश बिहार की राजनीति के बडे चेहरे हैं । उनके नाम पर वोट मिलता है। जनता उनपर भरोसा करती है। अपने काम से उन्होंने जनता के दिल में जगह बनाई है। ऐसे में उन्हें महागठबंधन में शामिल करना फायदेमंद है। वे आते हैं तो उनका स्वागत किया जाना चाहिये।
यह आरजेडी के स्टैंड के उलट है। भले ही यह बयान कांग्रेस के विधायकों ने दिया है ,लेकिन इसे पार्टी का स्टैंड माना जा सकता है। यह इस बात का संकेत है कि कांग्रेस आरजेडी को खुली छूट देना नहीं चाहती। गठबंधन का सहयोगी तय करने का अधिकार किसी एक घटक का नहीं होगा। कांग्रेस के इस रुख पर  आरजेडी अब क्या करेगी, अलग बात है मगर मूल सवाल तो यह है कि क्या नीतीश कुमार महागठबंधन में फिर जाना चाहते हैं ? अभी तक तो उनकी ओर  से सीधे तौर पर ना है। कल क्या होगा कोई नहीं जानता ,लेकिन उनके नाम पर दो पुराने दोस्तों में खटपट होने के आसार जरूर नजर आ रहे हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)