बाजार और राजनीति के बीच फंसी हमारी सुधा दी

जाहिर था कि यह सुधा दी का सम्मान नहीं था, बल्कि उनके वर्षों के काम को महज एक फ़िल्म के प्रोमोशन के लिये भुनाने की कोशिश थी।

New Delhi, Sep 23 : परसों दफ्तर से लौटा तो तिया केबीसी देख रही थी। एंकर अमिताभ बच्चन अनाउंस कर रहे थे कि कल के शो में सुधा वर्गीज हॉट सीट पर होंगी। सुनते ही मन खिल उठा। सुधा दी से 2008 से परिचय है। वे कोसी की आपदा को देखने समझने सुपौल आयी थीं। मैं पिछले कुछ दिनों से वहीं रह रहा था, इसलिये मुझे उन्हें घुमाने फिराने, आपदा के निशान और राहत के इंतजाम दिखाने का मौका मिला था। उस वक़्त पहली निगाह में उनकी सहजता ने मुझे आकर्षित किया। तब से कई दफा उनसे मिलने, उन्हें सुनने का मौका मिलता रहा। पिछले दिनों जब हमने माहवारी के मसले पर बिहार डायलॉग का आयोजन किया तो उन्हें भी वक्ता के रूप में आमंत्रित किया।

दलितों और खासकर मुसहर समाज की बच्चियों और महिलाओं के बीच में किये गए उनके काम की मिसाल अक्सरहाँ दी जाती है। इसी वजह से उन्हें पद्मश्री सम्मान मिला है। वे भले बिहार की नहीं हैं, मगर उन्होंने हमारे राज्य को अपनी कर्मभूमि बनाया है, इसलिये वे हमारी शान हैं, सहज ही था कि केबीसी में उनके आने की घोषणा से मन एक पल के लिये हर्षित हो गया। मगर अगले ही पल जब अमिताभ बच्चन ने कहा कि उनका साथ अभिनेत्री अनुष्का शर्मा देंगी और स्क्रीन पर अनुष्का के साथ मूंछों वाले वरुण धवन भी नजर आए तो मन बुझने लगा, एक विरक्ति पैदा हुई और तय किया कि यह एपिसोड नहीं देखूंगा।

जाहिर था कि यह सुधा दी का सम्मान नहीं था, बल्कि उनके वर्षों के काम को महज एक फ़िल्म के प्रोमोशन के लिये भुनाने की कोशिश थी। और वह एक ऐसी फिल्म है जो मौजूद सरकार के मेक इन इंडिया अभियान की सफलता बताने की कोशिश कर रही है। तो कल के शो में न सिर्फ यशराज फिल्म्स की महत्वाकांक्षी प्रस्तुति सुई-धागा मेड इन इंडिया दाव पर थी, बल्कि देश की राजनीति भी सुधा दी के काम के साथ खुद को जोड़कर अपने आप को संवेदनशील और मानवीय साबित करने की कोशिश कर रही थी।
सुधा दी ने अपने तरीके से महिलाओं को आजीविका के साधनों से जोड़ा है और एक मॉडल खड़ा किया है। हालांकि उनके कई अभियान को सरकारी सहयोग मिलता रहा है, मगर वह सेकेंडरी है। पहली बात उनका समर्पण और लोगों से जुड़कर एकात्म बना लेने की उनकी सहजता है। यह एक दिन में मुमकिन नहीं हुआ होगा। मगर कल केबीसी के प्लेटफार्म ने एक शो में उन्हें पेश कर अपने लिये, यशराज फिल्म्स के लिये और मौजूदा सरकार के पक्ष में उनकी वर्षों की उपलब्धियों को भुनाने की कोशिश की है।

ऐसा नहीं है कि केबीसी के प्लेटफॉर्म पर यह पहली दफा हुआ है। पहले भी यहां कैलाश सत्यार्थी, अंशु गुप्ता, सोनम वांगचुक जैसे समाजसेवी आ चुके हैं। आनंद जैसे कोचिंग संचालक को भी समाज को बदलने वाले नायक के तौर पर बुलाया गया, जिन्होंने उस मंच पर अमिताभ की चमचागिरी की इंतेहा कर दी और उसी रोज उनकी छवि मेरे मन से उतर गयी। मगर तब ऐसा नहीं लगता कि ऐसे लोगों से कई किस्म के लाभ लिए जा रहे हैं। लगता था कि इन्हें सहयोग कर इनके काम को ताकत देने की कोशिश हो रही है।
यह पहली दफा होता नजर आया कि बेहतर काम करने वालों को बुलाकर तीन तरह के लाभ उठाने की कोशिश हो रही है। कल का केबीसी मैंने नहीं देखा इसलिये बता नहीं सकता कि सुधा दी का व्यवहार कैसा था। मगर मैं उन्हें जानता हूँ कि वे सम में विषम में हर तरह के लोगों के बीच एक ही तरह से रहती हैं और अपनी बात उसी सहजता से कहती हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)