पटना की मां कैसे पिलाएं अपने बच्चों को पहला गाढ़ा दूध ?

कुर्जी अस्पताल मेटरनिटी सुविधाओं के लिए पटना का सबसे बेहतर अस्पताल माना जाता है. यहां रोज दर्जनों बच्चों को जन्म होता है. वहां की इस व्यवस्था को देखकर मैं दंग रह गया।

New Delhi, Aug 08 : स्तनपान सप्ताह चल रहा है. महज कुछ दशक पहले तक डब्बे का दूध फैशन में था, मगर अब स्तनपान को प्रोमोट किया जा रहा है. क्योंकि मेडिकल साइंस कहता है कि किसी बच्चे के लिए मां के दूध से बेहतर कुछ भी नहीं. इसलिए पहले छह महीने तक सिर्फ मां का दूध दें. फिर इसे धीरे-धीरे कम करें. आप बच्चे को दो साल तक तो दूध पिला ही सकते हैं.

इस मसले में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि जन्म के पहले घंटे के अंदर बच्चे को मां का दूध जरूर पिला दें. क्योंकि यह पहला पीला गाढ़ा दूध बच्चे के लिए अमृत के समान होता है. यह उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. मगर मेरा अपना अनुभव यही कहता है कि शहरी परिवेश में यह सामान्य सा काम आज भी करना काफी मुश्किल है.
हमने अपने दोनों बच्चों को पहला पीला गाढ़ा दूध पिलाया. क्योंकि हमारे दोनों बच्चे नार्मल डिलीवरी से हुए थे. तिया का जन्म उपमा की मौसी के नर्सिंग होम में हुआ था, सो वहां मौसी जी ने ध्यान रखा. नील के वक्त हमलोग खुद जागरूक हो चुके थे, इसलिए जोर डालकर यह काम करवाया.

मगर जब हम अपने एक पारिवारिक सदस्य के बच्चे की डिलीवरी के वक्त कुर्जी होली फैमिली अस्पताल में थे तो वहां की व्यवस्था देखकर हैरत में पड़ गये. जन्म के साथ ही मां और बच्चे को अलग कर दिया गया. मां किसी और वार्ड में और बच्चा दूसरे वार्ड में. दोनों की पहली मुलाकात ही एक रोज बाद हुई. यह अलग मसला था कि बच्चे का जन्म सिजेरियन तरीके से हुआ था. मगर मैंने वहां देखा कि यह आम चलन है. नार्मल बच्चे भी माताओं को एक रोज बाद मिलते हैं.
कुर्जी अस्पताल मेटरनिटी सुविधाओं के लिए पटना का सबसे बेहतर अस्पताल माना जाता है. यहां रोज दर्जनों बच्चों को जन्म होता है. वहां की इस व्यवस्था को देखकर मैं दंग रह गया. मैंने पूछा भी, मगर वहां की नर्सों ने कहा कि यहां यही व्यवस्था है. हम क्या कर सकते हैं? कुर्जी अस्पताल की कई ऐसी व्यवस्थाएं हैं, जो आज के जमाने में काफी पिछड़ी हैं. जैसे वहां जब गर्भवती महिलाओं की नियमित जांच होती है तो वहां महिलाओं के पतियों के एंट्री नहीं होती. जन्म के वक्त पति के साथ होने की बात ही छोड़ दीजिये.

दूसरे नर्सिंग होम्स में भी जब तक परिजन दबाव नहीं डालें, मां का पहला गाढ़ा दूध पिलाने की उत्सुकता डॉक्टरों या नर्सों में नहीं होती. सरकार स्तनपान के प्रचार में इतनी मेहनत करती है, उसे कुछ मेहनत डॉक्टरों और नर्सों की संवेदनशीलता बढ़ाने में भी करनी चाहिए.
एक भ्रम यह भी है कि सिजेरियन के बाद माताएं बच्चों को दूध नहीं पिला सकतीं. मगर विशेषज्ञ कहते हैं कि यह भी एक गलत धारणा है. बच्चे को अगर मां के स्तन से मुंह लगा दिया जाये तो वह खुद-बखुद सकिंग करने लगता है औऱ दूध आने लगता है. इससे बेहोश माता को भी कोई परेशानी नहीं है.
जन्म के बाद अगले 24 घंटे तक माता और शिशु को अलग रखना भी मुझे ठीक नहीं लगता. क्योंकि शिशु जो माता के गर्भ से पहली बार बाहर आता है, इस दुनिया में माता के स्पर्श से ही सुकून पाता है.

(वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)