थाने में घुसकर गाली-गलौज करने वाले पूर्व सांसद का राज्यसभा में मनोनयन

राज्यसभा की बहसों को समृद्ध करने के नाम पर सरकार कुछ अपने लोगों को राज्य सभा में भेजती है, तो कुछ नामी हस्तियों को ऑबलाइज करती है।

New Delhi, Jul 16 : आज राज्य सभा में राष्ट्रपति महोदय ने चार सदस्यों का अपनी तरफ से मनोनयन किया. इनमें नृत्यांगना सोनलमान, मूर्तिकार रघुनाथ महापात्रा, यूपी के पूर्व भाजपा सांसद राम शकल और संघ विचारक राकेश सिंहा शामिल हैं. ये चार लोग सचिन तेंदुल्कर, रेखा, महिला व्यवसायी अनु आगा और पूर्व एटोरनी जनरल के पारासरन की जगह लेंगे.

अभी के चार लोग और पुराने चार लोगों को राज्य सभा में बुलाने के मनोनयन का क्या आधार रहा होगा यह समझ नहीं आया. क्योंकि संविधान ने देश के राष्ट्रपति को स्वविवेक के आधार पर 12 लोगों को मनोनीत करने का अधिकार दिया है. लेकिन संविधान में इस बात का उल्लेख है कि ये लोग साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के क्षेत्र से जुड़ी देश की जानी-मानी हस्ती हो, ताकि उनके अनुभव और ज्ञान से राज्य सभा की बहसें समृद्ध हो सकें.

मगर न तो सचिन तेंदुल्कर ने और न ही रेखा ने राज्य सभा की बहसों में कोई ढंग की भागीदारी की और न ही कभी हमने महिला उद्यमी औऱ तथाकथित समाज सेवी अनु आगा या पूर्व एटोरनी जनरल के पारासरन की किसी महत्वपूर्ण मसले पर राज्य सभा में अपनी राय देते देखा. इसलिए जब हम यह सवाल उठायेंगे कि यूपी का एक पूर्व सांसद कैसे राज्य सभा में मनोनीत हो जाता है, जो दो माह पहले थाने में गाली-गलौज करता हुआ पाया गया. राष्ट्रपति महोदय ने आखिर इनमें कौन सी प्रतिभा देखी. और यह भी कि राकेश सिंहा की सार्वजनिक पहचान की संघी विचारक की है. वे न तो साहित्यकार हैं, न कलाकार, न वैज्ञानिक और न ही समाजसेवी, तो एक खास विचारधारा के प्रवक्ता को किस हैसियत से राज्य सभा बुलाया जा रहा है.

हम सवाल नहीं कर सकते, क्योंकि यह परंपरा ही बदल गयी है. राज्य सभा की बहसों को समृद्ध करने के नाम पर सरकार कुछ अपने लोगों को राज्य सभा में भेजती है, तो कुछ नामी हस्तियों को ऑबलाइज करती है. क्योंकि सचिन तेंदुल्कर भी न कलाकार हैं, न साहित्यकार, न समाजसेवी, न वैज्ञानिक. इसी कांग्रेस ने एक बार अपने नेता मणिशंकर अय्यर को भी इसी कोटे से राज्यसभा भेजा है.
मगर इस तरह के फैसलों से परीक्षा तो राष्ट्रपति महोदय के स्वविवेक की भी होती है. संघ विचारक राकेश सिंहा को छोड़ भी दिया जाये तो इस कोटे से वे कैसे एक पार्टी के पूर्व सांसद को राज्य सभा बुला सकते हैं, जिसने दो माह पहले ही थाने में घुसकर गाली-गलौज की हो.

(पुष्य मित्र के ब्लॉग से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)