इन दिनों देश में राजनीति का स्वाद बहुत तीखा हो गया है, मगर इस माहौल में भी सुषमा स्वराज को हर विचारधारा के लोग पसंद करते हैं।
New Delhi, Jul 04 : कर्नाटक चुनाव और बाद के उप-चुनावों में भाजपा की विफलता के बाद देश की पॉलिटिक्स के फ्लोर पर बड़ी तेजी से संयुक्त विपक्ष का आइडिया नजर आने लगा. और जैसे ही यह आइडिया फ्लोट हुआ सबकी निगाह मायावती पर गयी जो एक तसवीर में सोनिया गांधी के साथ गले मिलती नजर आ रही थीं. मगर जैसा कि हर बार होता है, जीत के बाद कांग्रेस फुस्स पड़ गयी, राहुल गांधी ने ब्रेक ले लिया और संयुक्त विपक्ष का आइडिया ठंडा पड़ गया. उधर ममता दीदी साउथ की लोकल पोलिटिकल पार्टियों के साथ मिलकर थर्ड फ्रंट का जाल बुनने लगीं, जो कहने को तो गैर भाजपा, गैर कांग्रेस गठबंधन होगा, मगर जरूरत के हिसाब से इसमें इन दोनों को फंसाया जा सकता है. देवैगौड़ा जो थर्ड फ्रंट के पहले एक्सपेरिमेंट में पीएम बनने का मजा ले चुके हैं, उन्हें भी यह आइडिया चार्मिंग लगा. मगर वह फ्रंट भी आगे बढ़ नहीं पा रहा.
2019 में किसी को नहीं मिलेगी मेजोरिटी
यह सच है कि 2019 में किसी दल या गठबंधन को फुल मेजोरिटी मिलने की उम्मीद नहीं है. जहां तक पार्टी का सवाल है, कांग्रेस के लिए तो यह नामुमकिन है, बीजेपी का आंतरिक सर्वे और सीएसडीएस के सर्वे भी यही बताते हैं कि वह बहुमत से दूर रहेगी. अमूमन विश्लेषक उसे 200-225 के बीच सीटें दे रहे हैं. क्योंकि ऐसी आशंका है कि यूपी, बिहार, एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे बड़े राज्यों में जहां 2014 में बीजेपी अधिकतम सीटें हासिल कर चुकी हैं, वहां इसका प्रदर्शन हर हाल में घटेगा. तमिलनाडु, केरल, ओड़िशा और आंध्र जैसे राज्य में बीजेपी अभी तक अपनी मजबूत उपस्थिति नहीं बना पायी है. बंगाल और तेलंगाना जैसे राज्य में इसकी स्थिति बेहतर हो सकती है, मगर वह उस घाटे की भरपाई नहीं कर सकता जो दूसरे राज्यों में होगा.
सुषमा के नाम पर राजी हो सकती हैं न्यूट्रल पार्टियां
ऐसे में ऐसा लगता है कि बीजेपी को भी चुनाव के बाद ढेर सारे सहयोगियों की जरूरत होगी और इसके लिए हमेशा की तरह उसे अपना चेहरा थोड़ा सॉफ्ट करना होगा. अगर उसे तृणमूल, तेलगु देशम, बीजद, जदयू, द्रमुक या अन्नाद्रमुक जैसे न्यूट्रल पार्टियों की समर्थन चाहिए होगी तो ये दल चाहेंगे कि नेतृत्व वाजपेयी जैसा हो, न कि मोदी जैसा. ऐसे में सुषमा स्वराज एक बेहतर विकल्प हो सकती है.
घटेगी मोदी-शाह की हैसियत
अभी अजेय नजर आने वाले मोदी और शाह की जोड़ी की हैसियत 2019 आते-आते घट जायेगी. क्योंकि तब तक वे राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों का चुनाव झेल चुके होंगे, जहां से भाजपा को फिसलना ही है, उठना नहीं है. जाहिर है ऐसी स्थिति में संघ में इनकी हैसियत घटेगी और भाजपा में इनके विपक्षी मजबूत होंगे. जैसे गडकरी, राजनाथ और दूसरे लोग.
सुषमा ने ट्रोल के खिलाफ आवाज उठा कर दिये हैं संकेत
यूपी के युगल के खिलाफ पासपोर्ट मसले में भक्तों ने जैसे सुषमा स्वराज को ट्रोल किया और फिर उन्होंने जैसे ट्रोल का विरोध किया इससे यह साफ मैसेज गया है कि सुषमा स्वराज कट्टरपंथ के खिलाफ है. उन्होंने पहले भी एक्शन लिया और बाद में दोनों को पासपोर्ट भी दिलाया. दिलचस्प है कि इस वक्त में सुषमा के साथ गड़करी और राजनाथ सिंह जैसे बड़े केंद्रीय मंत्री खड़े नजर आ रहे हैं.
ट्विटर पर लोगों की मदद करके बटोर चुकी हैं तारीफें
विदेश मंत्री के रूप में काम करते हुए ट्विटर पर विदेश में फंसे भारतीयों की मदद करके सुषमा स्वराज देश के सभी तबके के लोगों की तारीफ हासिल कर चुकी हैं. इन दिनों देश में राजनीति का स्वाद बहुत तीखा हो गया है, मगर इस माहौल में भी सुषमा को हर विचारधारा के लोग पसंद करते हैं.