तेज प्रताप को देखकर विरासत के दिलीप धवन याद आते हैं

मीडिया को भी तेज प्रताप का यह रंगीला स्वभाव अधिक भाता है. कभी वे कृष्ण कन्हैया बन जाते हैं, तो कभी जलेबी छानने लगते हैं।

New Delhi, Jul 05 : जब मैं तेज प्रताप के बारे में सोचता हूं तो मुझे हमेशा विरासत फिल्म में दिलीप धवन का किरदार याद आ जाता है. वे उस फिल्म में नायक शक्ति (अनिल कपूर) के बड़े भाई बने थे. तेज प्रताप भी उतने ही वल्नरेबल, उतने ही गैरजिम्मेदार लगते हैं. मुझे हमेशा से ऐसा लगता है कि अपने गैर-जिम्मेदार रवैये से किसी रोज वे ऐसी नौबत पैदा कर देंगे कि जहां राजद की पूरी राजनीति उलझ जायेगी, फिर तेजस्वी को बड़ी मशक्कत से उसे सुलझाना पड़ेगा. पिछले दिनों ऐसी नौबत आते-आते रह गयी, तेज प्रताप ने मीडिया के सामने लगभग यह कह ही दिया था कि वे परिवार में और पार्टी में अपनी उपेक्षा से नाराज हैं. मगर बात बिगड़ते-बिगड़ते संभल गयी. घर के अंदर बात संभल गयी, बाहर आकर तेज प्रताप ने कह दिया कि वे तो कृष्ण हैं और तेजस्वी अर्जुन.

इन दिनों फिर से वे तरह-तरह के स्वांग रचकर मीडिया में आ रहे हैं. एक फिल्म का पोस्टर. फिल्म का नाम रूद्र है. फिल्म कौन बना रहा है, प्रोड्यूसर कौन है, डॉयरेक्टर है कुछ पता नहीं. शूटिंग हो रही है, स्क्रिप्ट लिखी जा रही है, क्या हो रहा है या किसी को नहीं मालूम. मगर रूद्र फिल्म मीडिया में छायी हुई है. वे अगले रोज जिम में बॉडी बनाते नजर आते हैं. मीडिया लिखता है कि तेज प्रताप फिल्म के लिए बॉडी बना रहे हैं. फिर किसी पत्रकार को वे कह देते हैं कि पार्टी में जो लोग उनके संगठन की और युवाओं की उपेक्षा करेंगे उन्हें वे छोड़ेंगे नहीं. जहां छोटा भाई तेजस्वी नीतीश को महागठबंधन में आने से रोकने के लिए लगातार मेहनत कर रहा है, बड़ा भाई मीडिया का पोस्टर ब्वाय बनने की कोशिश कर रहा है.

दरअसल मीडिया को भी तेज प्रताप का यह रंगीला स्वभाव अधिक भाता है. कभी वे कृष्ण कन्हैया बन जाते हैं, तो कभी जलेबी छानने लगते हैं. मीडिया तेजस्वी की गंभीर बातों को अधिक स्पेस नहीं दे सकता, क्योंकि विज्ञापनदाता सरकार के नाराज होने का खतरा रहता है. तेज प्रताप को स्पेस देने से एक तीर से दो शिकार होते हैं, पाठकों को मजा भी आता है और यह उम्मीद भी बनी रहती है कि किसी रोज लालू परिवार में फूट पड़ सकती है.

दरअसल यह भारतीय राजनीति का पुराना किस्सा है. नेहरू-गांधी परिवार से भाजपा वाले मेनका गांधी को तोड़ लाये. तेज प्रताप अगर टूट कर दक्षिण टोले में चले जाते हैं तो कुछ करें न करें राजनीति में मजा तो आता ही रहेगा. वैसे भी तेज प्रताप बड़े भाई सिंड्रोम से परेशान हैं, जैसे धृतराष्ट्र रहा करते थे. उन्हें लगता है कि बड़े होने की वजह से उन्हें जो हक मिलना चाहिए था वह मिल नहीं रहा. मगर लालू जी तेज प्रताप को अच्छी तरह समझते हैं. इसलिए उन्होंने सोच विचार कर पार्टी का उत्तरदायित्व तेजस्वी को दिया है. तेजस्वी ने लालू के इस चयन को बार-बार सही साबित किया है. मगर बड़ा भाई होकर उत्तराधिकार नहीं पाने की जो कुंठा है, वह तेज प्रताप को बार-बार कुछ न कुछ करने के लिए मजबूर करती है. इस बीच कई लोगों को उनमें लालू की छवि भी नजर आने लगती है, और तेज प्रताप उन्हीं सपनों में खो जाते हैं. मगर सच यही है राजनीति उनके बस की बात नहीं. उन्हें अपने छोटे भाई को ही यह सब करने देना चाहिए. अपने लिए कुछ और धंधा तलाश लें तो बेहतर रहेगा.

(वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र के ब्लॉग से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)