विजय माल्या का राजनैतिक करियर, राज्यसभा पहुंचाने में स्वामी से लेकर कांग्रेस तक ने मदद की

माल्या एक बार कांग्रेस के सहयोग से राज्य सभा पहुंचे तो दूसरी दफा भाजपा के सहयोग से. आखिरकार थक हार कर 2016 में उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया।

New Delhi, Sep 15 : आदरणीय विजय विट्टल माल्या को अनुशासनप्रिय व्यक्ति लिखने के बाद मैंने उनका जीवन चरित्र पढ़ना शुरू किया है. यह बात संभवतः कई लोगों को ज्ञात हो कि वे उसी सुविख्यात कोंकणी गौड़ सारस्वत ब्राह्मणों की परंपरा से आते हैं, जिसके बारे में चार साल पहले जाने-माने पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने ट्वीट किया था कि आज उनके लिए बहुत खास दिन है. आज इस परंपरा के दो ब्राह्मण सुरेश प्रभाकर प्रभु और मनोहर परिक्कर केंद्रीय कैबिनेट का हिस्सा बने हैं.

हालांकि विजय विट्टल माल्या की पहचान सिर्फ इतनी नहीं है. उनके पिता विट्टल माल्या के नाम देश में इंडियन मेड फॉरेन लिकर की पहली कंपनी स्थापित करने का श्रेय है. जो उन्होंने मालाबार के तट पर शुरू किया था, इससे पहले वे स्कॉट कंपनी मैक्डॉवेल को खरीद चुके थे. आने वाले दिनों में उन्होंने युनाइटेड स्पिरिट की एक शाखा हमारे बिहार के हाथीदह में भी स्थापित की. 28 साल की उम्र में वे अपने पिता द्वारा स्थापित कंपनी युनाइटेड विवरेज ग्रुप के चेयरमैन बन गये. फिर उन्होंने इस व्यापार को आगे बढ़ाया और कई कंपनियों की स्थापना की. दिलचस्प है कि इन कंपनियों में द एशियन एज अखबार और सिने ब्लिज्ड पत्रिका भी है, केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर इसी एशियन एज के संस्थापक संपादक रह चुके हैं.

आने वाले दिनों में उन्होंने भारतीय उद्योग जगत को दो ऐसी खूबसूरत चीजें दीं जिसे लंबे वक्त तक याद रखा जायेगा. ये थीं, किंगफिशर एयरलाइंस और किंगफिशर कैलेंडर. बहरहाल मुझे लगता नहीं है कि इसके बारे में और विस्तार से कुछ बताने की जरूरत हैं.
हां, उनकी जीवनयात्रा के कुछ ऐसे पन्ने हैं जो अल्पज्ञात हैं. उसके बारे में जरूर आपसे जानकारी शेयर करना चाहूंगा. माल्या साहब का राजनीतिक कैरियर स्वनामधन्य आदरणीय सुब्रमणियम स्वामी के सान्निध्य में शुरू हुआ था, 2003 में उन्होंने स्वामी जी की पार्टी जनता पार्टी की सदस्यता ली और 2010 तक इस पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष रहे. यह कहा जा सकता है कि स्वामी जी की परख शानदार थी.

तभी माल्या एक बार कांग्रेस के सहयोग से राज्य सभा पहुंचे तो दूसरी दफा भाजपा के सहयोग से. आखिरकार थक हार कर 2016 में उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया. हालांकि उनके इस्तीफे से महज एक दिन बाद राज्य सभा की इथिक्स कमिटी उनके लिए ऐसा ही प्रस्ताव देने जा रही थी. माल्या ने कहा कि सरकार ने उनके बारे में गलत जानकारियां दी हैं, उन्हें लगता है कि भारत में उन्हें न्याय नहीं मिल सकता और वे देश छोड़ कर लंदन चले गये.
उन पर 94 सौ करोड़ का बैंकों का कर्ज है और वे डिफाल्टर बताये जाते हैं. मगर वे कहते हैं कि वे वित्त मंत्री अरुण जेटली को सब बता कर गये थे. यह सच है कि एक वक्त में उनकी प्रतिभा निर्विवाद रही थी. तभी कैलिफोर्निया की एक यूनिवर्सिटी ने उन्हें पीएचडी की मानद डिग्री दी थी, फ्रांस ने उन्हें काफी प्रतिष्ठित सम्मान दिया था और वर्ल्ड इकॉनामिक फोरम को उनमें भविष्य का वैश्विक नेता नजर आया था.
अब यह सवाल आप पूछ सकते हैं कि इतनी बड़ी संस्थाओं को और राजनेताओं को पार्टियों को उनमें एक अय्याश और धोखेबाज डिफाल्टर क्यों नजर नहीं आया. क्योंकि आज के वक़्त की यही परंपरा है, किसी मामले में फंसने से पहले हर फ्रॉड सम्मानित व्यक्ति हुआ करता है. लोग घर आने पर कुर्सी देते हैं और आवभगत में लग जाते हैं. फिलहाल लंदन में बैठ कर माल्या साहब ट्वीट पर ट्वीट करते हैं. उनके ट्वीट पढ़ते रहा कीजिये.

(वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)