सुधा भारद्वाज – जिस महिला ने अपनी अमेरिकी नागरिकता भारत के लिए छोड़ दी

सुधा भारद्वाज के बारे में मैं लंबे समय से जानता हूं. उनकी प्रतिभा और संकल्प शक्ति का बड़ा प्रशंसक हूं।

New Delhi, Sep 01 : प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रचना गंभीर अपराध है और इस तरह की साजिश में शामिल लोगों के साथ कोई रियायत नहीं बरती जानी चाहिए. लेकिन इस आरोप में कोई बेकसूर गिरफ्तार होता है तो उसकी जवाबदेही किस पर ठहराई जाए, उसकी भरपाई कौन करेगा ,कानून में इसकी कोई व्यवस्था नहीं है.

सुधा भारद्वाज के बारे में मैं लंबे समय से जानता हूं. उनकी प्रतिभा और संकल्प शक्ति का बड़ा प्रशंसक हूं. गिरफ्तार लोगों में वरवर राव की कविताएं पढता रहा हूं ( जैसे गदर की ) और गौतम नवलखा को EPW के लेखों के जरिए जानता हूं. अपनी बात आगे बढाने से पहले ये बताना जरुरी है कि सच के लिए नेताओं के बयान पर जाना भूल है. उनको ना कुछ पता होता है औऱ ना ही उनके पास ऐसे गंभीर मसलों को रखने का शऊर है.राहुल गांधी आज संघ-संघ की रट लगाकर सबको गोली मार देने की जो बात कह रहे हैं, वह उस सच के ठीक उलट है जिसको या तो वो नहीं जानते या फिर उस पर चादर डाले रखना चाहते हैं.

यही वरवर राव जो आज गिरफ्तार है- केंद्र में कांग्रेस की सरकार के रहते हुए कई बार गिरफ्तार हुए थे. अरुण फरेरा कांग्रेस शासन में ही पांच साल जेल में काट चुके हैं और सारे आरोपों से 2014 में बरी भी हुए. कोबाड गांधी और डाक्टर विनायक सेन जैसे नक्सल बुद्दिजीवियों या समर्थकों की गिरफ्तारियां कांग्रेस राज में ही हुई थीं. इसलिए अपनी बारी के वक्त सारे नक्सली/देशद्रोही और दूसरी सरकार में सारे फ्री व्वॉयस – ये निहायत बेतुका है. वैसे सच ये भी है कि छत्तीसगढ में कांग्रेसी नेतओं पर सुकमा घाटी में हुआ हमला नक्सलियों ने ही किया था. नक्सलियों की कमर तोड़नेेवाला आपरेशन ग्रीनहंट यूपीए सरकार ने ही चलााया था, जिस पर मानवाधिकार उल्लंघन के सैकड़ों गंभीर आरोप लगे.

अब कुछ बुनियादी और जरुरी बातें कर ली जाएं. देश में अलग अलग पेशे से जुड़े बुद्दिजीवियों का एक तबका- नक्सलियों से सहानुभूति रखता है. इसके पीछे उस संघर्ष को समर्थन है, जो गरीबों-मजदूरों के लिेये जीने लायक हालात बनाने का मकसद रखता है. इसमें जो रास्ता है वह व्यवस्था के खिलाफ हथियार उठाने और खूनखराबा करने का है. ऐसे में नक्सलियों या उनके संघर्षों से सहानुभूति रखने या फिर समर्थन देनेवाले कहीं ना कहीं उस खूनखराबे की नीति से सहमत दिखते हैं. इनलोगों के साथ फिर मुरव्वत क्यों? नक्सलवाद या माओवाद – वामपंथ नहीं है बल्कि ये मूल विचारधारा से विस्फोटक भटकाव है (इसपर लंबी बहस हो सकती है औऱ मैं चारु मजूमदार या कानू संन्याल के समर्थन में कभी नहीं रहा).

अब सवाल ये है कि सुधा भारद्वाज जैसी महिला की गिरफ्तारी क्यों? इसलिए कि पुणे पुलिस कह रही है? तो फिर ये भी तो बताया जाए कि नरेंद्र दाभोलकर की हत्या को लेकर सीबीआई, एटीएस और पुणे पुलिस ने अलग अलग लोगों को नामजद क्यों किया? सारी एजेंसिया अपना अपना राग क्यों अलाप रही हैं? जिस महिला ने अपनी अमेरिकी नागरिकता भारत के लिए छोड़ दी, जो आईआईटी कानपुर की टॉपर होते हुए भी अपना जीवन गरीबों-मजदूरों की लड़ाई में बिता दिया, जिस महिला ने आराम और सुख-सुविधा की मिली हुई जिंदगी के बदले दर-दर भटकना चुना, वो प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश का हिस्सा तो हरगिज नहीं हो सकती. मैंने डा विनायक सेन औऱ कोबाड गांधी की तरफदारी कभी नहीं की क्योंकि कई दफा ऐसा लगा कि ये लोग नक्सलियों की चुनी हुई राह में सक्रिय या फिर किसी औऱ तरीके से मदद करते हैं- लेकिन सुधा भारद्वाज की गिरफ्तारी पुलिस की कलई खोल कर रख देती है. ये गिरफ्तारी ही ये बताने के लिये काफी है कि इसके पीछे की मंशा नेक नहीं है.

(India News के प्रबंध संपादक राणा यशवंत के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)