यूक्रेन के साथ भारत के व्यापारिक रिश्‍ते, युद्ध हुआ तो इन चीजों पर पड़ सकता है असर

भारत के यूक्रेन के साथ ठीक-ठाक व्‍यापारिक संबंध हैं, युद्ध के हालात होने पर दोनों देशों के बीच किन चीजों पर असर पड़ सकता है आगे पढ़ें ।

New Delhi, Feb 15: पिछले कुछ दिनों से दुनिया भर में एक ही बात को लेकर हलचल है, यूक्रेन-रूस बॉर्डर पर बढ़ी तनातनी पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं । दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव बढ़ने से दुनिया के ऊपर तीसरे विश्व युद्ध का खतरा भी मंडराने लगा है । लेकिन ये जंग होती है तो नुकसान चंद देशों का नहीं होगा बल्कि दुनिया भर का होगा । क्‍योंकि अब इस जंग का जोखिम सिर्फ पूर्वी यूरोप तक सीमित नहीं रह गया है । अमेरिका, यहां तक कि भारत तक इसकी आंच पहुंचने लगी है । इस तनाव के चलते भारत की इकोनॉमी और ट्रेड को ठीक-ठाक नुकसान हो सकता है ।

यूक्रेन के साथ भारत का व्यापार
भारत में यूक्रेन के दूतावास की वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के मुताबिक 2020 में दोनों देशों के बीच 2.69 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था । इसमें यूक्रेन ने भारत को 1.97 बिलियन डॉलर का निर्यात किया, जबकि भारत ने यूक्रेन को 721.54 मिलियन डॉलर का निर्यात किया । आपको बता दें यूक्रेन भारत को खाने वाले तेल, खाद समेत न्यूक्लियर रिएक्टर और बॉयलर जैसी जरूरी मशीनरी एक्सपोर्ट करता है । वहीं यूक्रेन भारत से दवाएं और इलेक्ट्रिकल मशीनरी खरीदता है।

यूक्रेन से भारत इन चीजों को खरीदता है
ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स के आंकड़ों के मुताबिक  साल 2020 में भारत ने यूक्रेन से 1.45 बिलियन डॉलर के खाने वाले तेल की खरीद की थी । इसके अलावा भारत ने यूक्रेन से करीब 210 मिलियन डॉलर का खाद और करीब 103 मिलियन डॉलर का न्यूक्लियर रिएक्टर और बॉयलर मंगाया । न्यूक्लियर रिएक्टर और बॉयलर के मामले में भारत के लिए रूस के बाद यूक्रेन सबसे बड़े सप्लायर में से एक है, अगर इसकी आपूर्ति रुकती है तो भारत में न्यूक्लियर एनर्जी पर काम धीमा हो सकता है ।

रूस है एक अहम फैक्टर
लेकिन भारत और यूक्रेन के बीच संबंधों में रूस हमेशा से अहम भूमिका निभाता रहा है । पिछले कुछ सालों से दोनों देशों के बीच व्यापार के ट्रेंड को देखें तो यह रूस के साथ संबंधों के हिसाब से घटता-बढ़ता ही रहा है । साल 2014 में जब क्रीमिया को लेकर यूक्रेन और रूस के बीच तनाव बढ़े तब तक दोनों देशों का आपसी व्यापार 3 बिलियन डॉलर से ज्यादा का था । तनाव के बाद 2015 में यह 1.8 बिलियन डॉलर पर आ गया । इसके बाद भी ये आपसी व्यापार कुछ सुधरा, लेकिन अभी भी यह पुराने स्तर तक नहीं पहुंच पाया है । ऐसे में अब एक बार फिर युद्ध की आशंकाओं के बीच इस व्यापार के फिर से गिरने का रिस्क है ।