‘अतिक्रमण हटा तो 12 से 40 फीट हुई सड़क’

लोगबाग पटना हाईकोर्ट के शुक्रगुजार हैं और यह भी उम्मीद करते हैं कि अदालत इस बात की पक्की व्यवस्था करेगी कि आगे दुबारा कहीं अतिक्रमण न हो।

New Delhi, Sep 09 : ‘अतिक्रमण हटा तो 12 से 40 फीट हुई सड़क।’ आज के दैनिक जागरण में एक खबर का यही शीर्षक है। सर्वाधिक सटीक शीर्षक। लोगों को मालूम तो हो कि अतिक्रमण हटाओ अभियान से आम लोगों को कितना लाभ मिलने वाला है। इसके साथ यह भी खबर है कि मेन रोड 70 फीट से 109 फीट तक पहुंच गई है। पटना हाईकोर्ट के सख्त आदेश के बाद पटना में अतिक्रमण हटाओ अभियान चल रहा है।

स्वाभाविक है कि अतिक्रमणकारियों को पीड़ा हो रही है। उनके पुनर्वास की व्यवस्था होनी ही चाहिए।
पर, प्राथमिकता तो यह होनी चाहिए कि भारी अतिक्रमण के कारण आम लोगों को रोज -रोज हो रहे अपार कष्टों से जल्द मुक्त कराया जाए। यदि मुख्य सड़कें चैड़ी होंगी तो कोई एम्बुलेंस जाम में नहीं फंसेगा।किसी परीक्षार्थी की परीक्षा नहीं छूटेगी और न किसी का टे्रन या बस। गर्भवती महिला का अस्पताल जाने के रास्ते में ही प्रसव नहीं हो जाएगा। पर इन बातों पर गौर किए बिना सरकार बेपरवाह रही है।पुलिस व निगम के अधिकतर लोग घूस वसूलने में मगन रहे और अतिक्रमणकारी बेफिक्र होकर लोगों को कष्ट पहुंचाते रहे।

लोगबाग पटना हाईकोर्ट के शुक्रगुजार हैं और यह भी उम्मीद करते हैं कि अदालत इस बात की पक्की व्यवस्था करेगी कि आगे दुबारा कहीं अतिक्रमण न हो। जब -जब अतिक्रमण हटाओ अभियान चलता है तो अतिक्रमण कारी राग अलापते हैं कि ‘किसी पूर्व नोटिस के बिना हमें हटा दिया गया।’ हे अतिक्रमणकारियो ! यदि आपके पुश्तैनी मकान की जमीन पर दो फीट भी कोई अतिक्रमण कर ले तो आप मरने -मारने पर उतारू हो जाओगे। पर, चूंकि सड़क की जमीन सबकी है यानी किसी की नहीं है तो तुम उसे हडप़ लेने में तनिक शर्म नहीं करते। एक कहावत है-कमजोर की जोरू सबकी भौजाई !
एक समस्या और भी है।

कदम कुआं साहित्य सम्मेलन के पास जिला प्रशासन ने करीब दो दशक पहले पक्का सब्जी मार्केट का निर्माण करा दिया था। फिर भी सब्जी दुकानदार मुख्य सड़क पर कब्जा करके दुकानें बिछाते रहे और शासन द्वारा निर्मित मार्केट को गोदाम के रूप में इस्तेमाल करते रहे।

दूसरा उदाहरण पटना जं. के पास के बहुमंजिले पार्किंग स्थल का है। आॅटो वाले वहां नहीं जाते। क्योंकि सड़कों को घेर कर आॅटो लगाने में उन्हें अधिक आय दिखती है। साथ ही ट्रफिक पुलिस वालों को भी उनसे वसूली का अवसर मिल जाता है। ऐसी अराजकता कब तक चलती ? भला हो हाईकोर्ट का जिससे यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ।क्योंकि माननीय न्यायाधीशों को भी तो सड़कों पर निकलना पड़ता है।
अब अदालत को जिला मुख्यालयों की तरफ भी ध्यान देना चाहिए। वहां की कमान जिला जज संभालेंगे तो स्थिति सुधरेगी।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)