जब मुर्गा से अधिक प्रोटीन मूंगफली में उपलब्ध है तो मुर्गा क्यों खाना ?

इस देश में जो दूध बेचा जा रहा है, उसमें से 85 प्रतिशत नकली है। अधिकतर दवाओं और भोज्य व खाद्य पदार्थ का भी यही हाल है। 

New Delhi, Jul 09 : आप जो मछली खाते हैं, उनमें से अधिकांश कई दिन पहले पानी से निकाली गयी होती है। अधिक मात्रा में फार्मलिन नामक रसायन का इस्तेमाल करके उसे सड़ने से बचाया जाता है। फार्मलिन से कैंसर पैदा होता है। आज के ‘हिन्दू’ की खबर के अनुसार 30 में से 11 नमूनों की जांच से मछली में फार्मलिन पाया गया। इससे पहले हिन्दू ने ही गत जनवरी में अंडों के बारे में चैंकाने वाली खबर दी थी।

रोगों से बचाने के लिए मुर्गों को जो एंटी बायटिक कोलिस्टीन दिया जाता है, वह मानव शरीर के लिए घातक है। ऐसे कोलिस्टीन युक्त मुर्गे खाने वाले व्यक्ति जब खुद बीमार पड़ेंगे तो उन पर कोई भी एंटीबाॅयोटिक काम नहीं करेगा। क्योंकि कोलिस्टीन को ‘लास्ट होप’ कहा जाता है। गत मई में प्रभात खबर ने खबर दी थी कि पटना रेलवे जंक्शन के पास सड़न और गंदगी में केमिकल से बड़े पैमाने पर पनीर बना कर दूर- दूर तक भेजा जा रहा है। यह बात उस समय की है जब अटल जी प्रधान मंत्री थे।
पटना हवाई अड्डे पर उन्हें जो मिनरल वॅाटर परोसा गया, वह नकली था। कान पुर में तब के प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह के साथ भी वही हुआ था।

इस देश में जो दूध बेचा जा रहा है, उसमें से 85 प्रतिशत नकली है। अधिकतर दवाओं और भोज्य व खाद्य पदार्थ का भी यही हाल है। ‘पैथोलाॅजिकल जांच पर करोड़ों रुपए कमीशन डाक्टरों को मिलता है।’@प्रभात खबर-16 दिसंबर 2017@ कितना गिनाएं ? कुछ के साथ तो फिलहाल जीना ही पड़ेगा।पर जब मुर्गा से अधिक प्रोटीन मूंगफली में उपलब्ध है तो मुर्गा क्यों खाना ? अंग्रेजों के जमाने में पटना नगर पालिका के डाक्टर मांस के लिए काटे जाने से पहले हर बकरे की मेडिकल जांच कर लेते थे। पता नहीं किसके शरीर में टी.बी.की बीमारी हो जो लोगों के शरीर तक पहुंच जाए ! पर अब तो इस तरह की सनसनीखेज खबरें छपने के बाद भी आम तौर पर कहीं की कोई सरकार सबक सिखाने वाली कोई कारगर कार्रवाई नहीं करती।

क्योंकि कार्रवाई करने पर एक तो ‘आय’ बंद हो जाएगी या फिर जातीय व सांप्रदायिक वोट बैंक लाॅबी नाराज हो जाएगी। इस तरह अपना देश ऐसे ही मौत की ओर सड़कता जाता है। इसलिए जब तक इस देश में सिंगा पुर के लीन कुआन यू @ 1923-2015@की तरह कोई लोक कल्याणकारी तानाशाह न पैदा हो जाए, तब तक मुर्गा, अंडा तथा मांस खाना तो आप छोड़ ही सकते हैंं। इसके विकल्प मौजूद भी हैं। हां, पर, ऐसा तानाशाह नहीं हो जो अपनी गद्दी बचाने के लिए या फिर अपनी संतान को उत्तराधिकारी बनाने के लिए तानाशाह बने। भ्रष्ट-जातिवादी-परिवारवादी तानाशाह ऊपर लिखी बुराइयों को खत्म नहीं कर पाएगा।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)