बिहार के राज्यपाल ने चेताया, उच्च शिक्षा में धंधेबाजी नहीं चलेगी, देंगे कड़वी दवा

बिहार के उच्च सरकारी शिक्षण संस्थानों में पठन पाठन का माहौल बन गया तो न सिर्फ गरीबों को उसका लाभ मिलेगा, बल्कि यहां के स्कूलों के लिए योग्य शिक्षक भी पैदा होने लगेंगे।

New Delhi, Sep 20 : बिहार के राज्यपाल सह विश्व विद्यालयों के चांसलर मान्यवर लालजी टंडन का आज के ‘प्रभात खबर’ में इंटरव्यू छपा है। राज्यपाल महोदय ने कहा है कि बिहार में उच्च शिक्षा की हालत ठीक नहीं है। जरूरत पड़ी तो वे इसके लिए कड़वी दवा देने से भी नहीं हिचकेंगे।
उन्होंने जो कुछ कहा है, उससे लग रहा है कि राज्यपाल को इस राज्य की उच्च शिक्षा को लगी असली बीमारी का पता चल गया है।

अब कड़वी दवा देने की बारी उनकी है। इसलिए कि साधारण दवा से काम चलने वाला नहीं है। इस इलाज में राज्यपाल को नीतीश सरकार का पूरा सहयोग मिलेगा, ऐसी उम्मीद की जाती है। कड़वी दवा से शिक्षा क्षेत्र के कत्र्तव्य विमुख लोगों को बड़ी पीड़ा होगी। पर उन्हें जितनी पीड़ा होगी, उसी अनुपात में
आम लोग खुश होंगे। राज्यपाल को दुआ देंगे। दरअसल अमीर लोग तो अपने बाल -बच्चों को बिहार से बाहर भेज कर अच्छे शिक्षण संस्थानों में पढ़ा ही लेते हैं, पर यहां के सरकारी शिक्षण संस्थानों की दुर्दशा का सर्वाधिक नुकसान उन गरीब व पिछड़े वर्ग के परिवारों के विद्यार्थियों को होता है जो शिक्षा पर अधिक पैसे खर्च नहीं कर सकते।

यदि यहां के उच्च सरकारी शिक्षण संस्थानों में पठन पाठन का माहौल बन गया तो न सिर्फ गरीबों को उसका लाभ मिलेगा, बल्कि यहां के स्कूलों के लिए योग्य शिक्षक भी पैदा होने लगेंगे। ऐसा नहीं है कि यहां की शिक्षा में सुधार नहीं हो सकता। 1972 में तत्कालीन मुख्य मंत्री केदार पांडेय ने उच्च शिक्षा में सुधार किया था।

1996 में पटना हाई कोर्ट के सख्त आदेश से मैट्रिक व इंटर की पूर्ण कदाचारमुक्त परीक्षाएं हुई थीं। उन सुधारों को तब आम लोगों का भारी समर्थन भी मिला था। 1972 में भी केंद्र व राज्य में एक ही दल की सरकारें थीं, इसलिए सुधार में कोई बाधा नहीं आई। आज भी दोनों जगह एक ही गठबंधन की सरकारें हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)