‘आधुनिक बिहार के निर्माता श्रीबाबू राजनीतिक बुराइयों से कोसों दूर थे, परिवारवाद के सख्त खिलाफ थे’

1961 में बिहार के मुख्य मंत्री डा. श्रीकृष्ण सिंह के निधन के 12 वें दिन राज्यपाल की उपस्थिति में उनकी निजी तिजोरी खोली गयी थी। तिजोरी में कुल 24 हजार 500 रुपए मिले।

New Delhi, Oct 22 : आज की राजनीति को जिन दो प्रमुख बुराइयों ने बुरी तरह ग्रस लिया है, श्रीबाबू उनसे कोसों दूर थे। वे बुराइयां हैं घनघोर परिवारवाद-वंशवाद और अपार धनलोलुपता।
कल उनकी जयंती मनाने वाले कितने नेता हैं जो मंच से यह कह सकेंगे कि ‘इन बुराइयों से दूर रह कर हम श्रीबाबू को सच्ची श्रद्धांजलि देंगे ?’ ऐसा कहने का नैतिक अधिकार आज इस देश के इक्के -दुक्के नेताओं को ही है।

इस पोस्ट पर कुछ लोग यह टिप्पणी भी कर सकते हैं कि जमाना बदल गया है। अरे भई, जमाना जब बदल गया है तो पुराने जमाने के ऐसे महान नेताओं की जयंतियां ही क्यों मनाते हो ? दरअसल जमाना नहीं बदला। अधिकतर नेता अपनी सुविधा के लिए खुद बदल गए है या मौका मिलने पर बदल जाना
चाहते हैं। आज भी अधिकतर लोग अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहते हैं। भले ही किन्हीं मजबूरियों में चाहे वे जिसे भी वोट दें।

श्रीबाबू के संदर्भ में वे दो प्रमुख बातें।
1- 1961 में बिहार के मुख्य मंत्री डा. श्रीकृष्ण सिंह के निधन के 12 वें दिन राज्यपाल की उपस्थिति में उनकी निजी तिजोरी खोली गयी थी। तिजोरी में कुल 24 हजार 500 रुपए मिले। वे रुपए चार लिफाफों में रखे गए थे। एक लिफाफे में रखे 20 हजार रुपए प्रदेश कांग्रेस के लिए थे। दूसरे लिफाफे में तीन हजार रुपए मुनीमी साहब की बेटी की शादी के लिए थे। तीसरे लिफाफे में एक हजार रुपए थे जो महेश बाबू की छोटी कन्या के लिए थे। चौथे लिफाफे में 500 रुपए उनके विश्वस्त नौकर के लिए थे।श्रीबाबू ने अपनी कोई निजी संपत्ति नहीं खड़ी की।

2 -1957 में कांग्रेस के कुछ प्रमुख लोगों ने श्रीबाबू से कहा कि हम लोग चाहते हैं कि शिव शंकर सिंह विधान सभा के उम्मीदवार बनें। शिव शंकर बाबू उनके बड़े पुत्र थे। श्रीबाबू ने कहा कि ठीक है, उसे बनाइए। फिर मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा। क्योंकि एक परिवार से एक ही व्यक्ति को चुनाव लड़ना चाहिए।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)