बीजेपी को मिला अब तक का सबसे बड़ा चंदा, इस ट्रस्ट ने दिये इतने करोड़ रुपये

ये ट्रस्ट पहले भी करोड़ों रुपये राजनीतिक पार्टियों को दान में देती थी, लेकिन पहली बार राष्ट्रीय स्तर की पार्टी को इन्होने इतना बड़ा दान दिया है।

New Delhi, Nov 06 : भारतीय जनता पार्टी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है, अब इस पार्टी को फाइनेशियल ईयर 2017-18 में अब तक का सबसे बड़ा दान मिला है, 7 प्रमुख कंपनियों का एक समूह ट्रस्ट ने बीजेपी को 144 करोड़ रुपये का दान दिया है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार प्रूडेंट इल्केट्रोरल ट्रस्ट ने रिपोर्ट जारी कर कहा है कि उसने कांग्रेस और बीजू जनता दल को भी दान दिया है।

पहली बार बड़ी पार्टी का दान
आपको बता दें कि ये ट्रस्ट पहले भी करोड़ों रुपये राजनीतिक पार्टियों को दान में देती थी, लेकिन पहली बार राष्ट्रीय स्तर की पार्टी को इन्होने इतना बड़ा दान दिया है। प्रूडेंट ट्रस्ट को पहले सत्या इलेक्ट्रोरल ट्रस्ट के नाम से जाना जाता था, जिन कंपनियों ने इस ट्रस्ट के जरिये दान दिया है, उनमें डीएलएफ 52 करोड़, भारती ग्रुप 33 करोड़, श्रॉफ ग्रुप 22 करोड़, टोरेंट ग्रुप 20 करोड़, डीसीएम श्रीराम 13 करोड़, केडिला ग्रुप 10 करोड़ और हल्दिया एनर्जी 8 करोड़ शामिल है।

कांग्रेस को सिर्फ 10 करोड़
इस ग्रुप ने मुख्य विपक्षी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस को केवल 10 करोड़ रुपये दान में दिये हैं, इसके साथ ही इस ट्रस्ट ने ओडिशा की सत्ताधारी पार्टी बीजू जनता दल को भी 5 करोड़ रुपये दिये हैं, इससे पहले शिरोमणि अकाली दल, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल को भी दान में पैसे दे चुके हैं।

कंपनियां करती है इस ट्रस्ट के जरिये दान
देश की 90 फीसदी कंपनियां सिर्फ इस ट्रस्ट के जरिये ही पॉलिटिकल पार्टियों को चंदा देती है, बीजेपी को 18 किश्तों में 144 करोड़ रुपये दिया गया है, कांग्रेस को चार किश्तों में दस करोड़ और बीजेडी को तीन चरणों में पांच करोड़ रुपये दिये गये हैं। देश में फिलहाल 22 पंजीकृत इलेक्ट्रोरल ट्रस्ट है, जिनमें प्रूडेंट सबसे बड़ा है।

राजनीतिक पार्टियों को चंदा
आपको बता दें कि राजनीतिक पार्टियों के आय का सबसे बड़ा स्त्रोत चंदा ही माना जाता है, सभी राजनीतिक पार्टियां आम लोगों से लेकर ट्रस्टों और कंपनियों से चंदा लेती है, चंदा हासिल करने में बीजेपी फिलहाल नंबर वन पर है, जबकि कांग्रेस इस मामले में भी पिछले कुछ सालों में पिछड़ी है, पिछले कुछ सालों में उन्हें मिलने वाले चंदे में कटौती हुई है।