मायावती से भाजपा गदगद्

मायावती ने 80 में से 40 सीटें मांगी हैं जबकि 2014 में वे एक भी सीट नहीं जीत पाई थीं। बसपा को 20 प्रतिशत वोट जरुर मिले थे लेकिन इस बार 20 प्रतिशत मिलना भी जरा मुश्किल है।

New Delhi, Sep 21 : अगली सरकार भाजपा की बनेगी या विरोधियों की, यह तय करने में सबसे बड़ी भूमिका यदि किसी की होगी तो वह उत्तरप्रदेश की होगी। यदि उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन बन जाए तो 2019 के चुनाव में भाजपा अपने आप अल्पमत में आ सकती है। इन तीनों पार्टियों ने मिलकर 50 प्रतिशत से भी अधिक वोट जुटा लिये थे, अपनी करारी हार के बावजूद ! जबकि लहर पर सवार होने के बावजूद भाजपा को 43 प्रतिशत वोट ही मिले थे।

विधानसभा चुनाव में अपूर्व विजय पाने के बाद भी कुछ महिनों में ही लोकसभा के उप-चुनाव में भाजपा ने चारों सीटें खो दीं, क्योंकि विरोधी एकजुट हो गए थे। यदि 2019 में विरोधी एक हो जाएं तो भाजपा को 80 में से 10-15 सीटें मिल जाएं तो भी गनीमत ही होगी लेकिन मायावती ने इधर जो पैंतरा मारा है, उसने 56 इंच के खाली फेफड़ों में थोड़ी हवा भर दी है।

भाजपा गदगद है। मायावती ने 80 में से 40 सीटें मांगी हैं जबकि 2014 में वे एक भी सीट नहीं जीत पाई थीं। बसपा को 20 प्रतिशत वोट जरुर मिले थे लेकिन इस बार 20 प्रतिशत मिलना भी जरा मुश्किल है। फिर भी वे और सपा के अखिलेश यादव आपस में भिड़ गए तो विरोधियों का सारे भारत में बेड़ा गर्क हो जाएगा। इस मौके पर अखिलेश ने काफी परिपक्वता दिखाई और कहा कि वे एकता के खातिर दो कदम पीछे हटने को तैयार हैं।

मायावती की माया उप्र के बाहर भी कारगर है। हिंदी प्रांतों के दलितों में उनका जादू बरकरार है, हालांकि युवा दलित नेता चंद्रशेखर अपनी भीम आर्मी को बसपा से भिड़ाने पर आमादा हैं। दलितों के दिल जीतने की कवायद में भाजपा ने सारे दलों को पीछे छोड़ दिया है। उसने सर्वोच्च न्यायालय के दलित-संबंधी फैसले को संसद में लाकर उल्टा लटका दिया है। भाजपा इस घटना में भी खूब रस ले रही है कि शिवपाल यादव ने नई पार्टी खड़ी कर ली है। इधर चाचा-भतीजा और उधर बुआ-भतीजा भाजपा के लिए स्वादिष्ट भुर्त्ता तैयार कर रहे हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)