होली के मौके पर जब पूरा मुलायम परिवार सैफई में जमा हुआ, तो इस बात पर मंथन हुआ, कि अखिलेश यादव को विधानसभा की सदस्यता छोड़नी चाहिये या लोकसभा की।
New Delhi, Mar 22 : यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजों के ऐलान के बाद से ही बड़ा सवाल ये बना हुआ था कि क्या अखिलेश यादव विधायक रहना पसंद करेंगे या सांसद, मंगलवार को उन्होने लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर साफ कर दिया कि पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने वाले अखिलेश भैया विधायक बने रहेंगे, माना जा रहा है कि 2027 को ध्यान में रखकर सपा ने रणनीति में बदलाव किया है, पार्टी के लिये दिल्ली की सियासत से ज्यादा महत्वपूर्ण यूपी की सियासत है।
वोटर्स के बीच गलत संदेश
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2017 में सत्ता गंवाने के बाद 2019 में अखिलेश यादव के लोकसभा चले जाने से वोटर्स के बीच गलत संदेश गया, वो विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले तक यूपी की जमीनी राजनीति में कम सक्रिय रहे, कई मौकों पर प्रियंका गांधी ने उनसे ज्यादा सक्रियता दिखाई, अखिलेश ट्विटर तक ही सीमित रहे, माना जा रहा है कि इस धारणा की वजह से सपा को चुनाव में नुकसान हुआ।
होली पर मंथन
सूत्रों का कहना है कि होली के मौके पर जब पूरा मुलायम परिवार सैफई में जमा हुआ, तो इस बात पर मंथन हुआ, कि अखिलेश यादव को विधानसभा की सदस्यता छोड़नी चाहिये या लोकसभा की, बताया जा रहा है कि खुद मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को विधानसभा में रहकर अगले चुनाव की तैयारी में अभी से जुट जाने को कहा है, रामगोपाल यादव भी यही चाहते थे।
वोट प्रतिशत और सीटें बढी
सपा भले ही सत्ता से काफी दूर रह गई हो, लेकिन 2017 के मुकाबले पार्टी के वोट प्रतिशत में बड़ा इजाफा हुआ है, सीटें भी दोगुनी से ज्यादा हो गई, इससे पार्टी के उत्साह में इजाफा हुआ है, चुनाव नतीजों को अखिलेश यादव ने भी इसी नजरिये से देखते हुए कहा था कि उनकी पार्टी की सीटें बढी है, बीजेपी की घटी है, अब देखना है कि वो खुद नेता प्रतिपक्ष बनकर विधानसभा में योगी को टक्कर देते हैं या फिर किसी और को आगे करते हैं।