NATO के नाम से ही रूस को मचती है चिढ़, जानें क्या है 7 दशक पुरानी दुश्मनी की कहानी

रूस और यूक्रेन के बीच जंग का आगाज हो चुका है, कीव में बम धमाकों की गूंज और लपट दिखाई देने लगे हैं । इस बीच आपको बताते हैं कि आखिर रूस का NATO के साथ 36 का आंकड़ा क्‍यों है ।

New Delhi, Feb 24: रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग की जड़ NATO को माना जा रहा है, नाटो यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन, जिसे 1949 में शुरू किया गया था । दरअसल यूक्रेन नाटो में शामिल होना चाहता है लेकिन रूस ऐसा नहीं चाहता । रूस को डर है कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हुआ तो नाटो देशों के सैनिक और ठिकाने के उसकी सीमा पर तेनात हो जाएंगे, जो कि उसे असुरक्षित कर देगा । लेकिन एक सवाल जो लगातार उठ रहा है वो ये कि रूस नाटो से इतना चिढ़ता क्यों है ?

कैसे हुए नाटो की शुरुआत, क्‍यों पड़ी जरूरत?
दरअसल, 1939 से 1945 के बीच जब दूसरा विश्व युद्ध छिड़ा तो सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप के इलाकों से सेनाएं हटाने से इनकार कर दिया । 1948 के समय बर्लिन को भी घेर लिया । यही देखते हुए अमेरिका ने सोवियत संघ की विस्तारवादी नीति को रोकने के लिए 1949 में NATO की शुरुआत की । नाटो की शुरुआत में इसके 12 सदस्य देश थे, जिनमें अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, इटली, नीदरलैंड, आइसलैंड, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, नॉर्वे, पुर्तगाल और डेनमार्क शामिल हैं । आज इस सुरक्षा संस्‍थान में 30 देश शामिल हैं । NATO एक सैन्य गठबंधन है, जिसका मकसद साझा सुरक्षा नीति पर काम करना है ।  अगर कोई बाहरी देश किसी NATO देश पर हमला करता है, तो उसे बाकी सदस्य देशों पर हुआ हमला माना जाएगा और उसकी रक्षा के लिए सभी देश मदद करेंगे ।

रूस को क्‍यों है नाटो से चिढ़?
दूसरा विश्व युद्ध खत्म होते-होते दुनिया दो खेमों में बंट गई, दुनिया में दो सुपर पावर बन चुके थे । एक था अमेरिका और एक सोवियत संघ । 25 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ टूट गया, टूटकर 15 नए देश बने । ये 15 देश थे- आर्मीनिया, अजरबैजान, बेलारूस, इस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, कीर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया, मालदोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन और उज्बेकिस्तान । सोवियत संघ बिखरा तो दुनिया में अमेरिका ही एकमात्र सुपर पावर बन गया । जिसके बाद अमेरिका के नेतृत्व वाला NATO अपना दायरा बढ़ाता चला गया । सोवियत संघ से टूटकर अलग बने देश भी NATO के सदस्य बनते चले गए । 2004 में इस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया NATO में शामिल हो गए । फिर 2008 में जॉर्जिया और यूक्रेन को भी NATO में शामिल होने का न्योता दिया गया था, लेकिन दोनों देश सदस्य नहीं बन सके ।
पुतिन NATO के विस्तार को लेकर पहले भी आपत्ति जता चुके हैं । पिछले साल दिसंबर में व्‍लादिमीर पुतिन ने कहा था, ‘हमने साफ कह दिया है कि पूरब में NATO का विस्तार मंजूर नहीं है । अमेरिका हमारे दरवाजे पर मिसाइलों के साथ खड़ा है, अगर कनाडा या मैक्सिको की सीमा पर मिसाइलें तैनात कर दी जाएं तो अमेरिका को कैसा लगेगा?’

रूस और NATO
सैन्य ताकत की बात करें या फिर रक्षा पर खर्च की दोनों ही मामलों में रूस और NATO का कोई मुकाबला नहीं । NATO में 30 देश मिलकर काम करते हैं जबकि रूस अकेला । अगर युद्ध में सीधे नाटो शामिल हुआ तो उसके पास 33 लाख से ज्यादा जवान हैं, वहीं, रूस के पास करीब 12 लाख की सेना है, जिसमें से 8 लाख जवान सक्रिय हैं । दरअसल रूस चाहता है कि पूर्वी यूरोप में NATO अपना विस्तार बंद करे । पुतिन यूक्रेन के NATO में शामिल न होने की गारंटी मांग रहे हैं, इसके अलावा रूस ने उन 14 देशों को भी NATO का सदस्य बनाने को भी चुनौती दी है जो वार्सा संधि का हिस्सा थे । हालांकि, सोवियत संघ के टूटने के बाद इस संधि का भी बहुत ज्यादा मतलब नहीं रह गया ।