बंधन बैंक के अरबपति CEO, MD की हैरान कर देने वाली कहानी, कभी घर चलाने के लिए दूध बेचा करते थे

सफलता किसी की मोहताज नहीं होती, कड़ी मेहनत कीजिए और वो एक दिन आपके पीछे खुद ब खुद चली आएगी । कुछ ऐसी ही कहानी है बंधन बैंक के मुखिया की, पढ़ें और आप भी प्रेरणा लें ।

New Delhi, May 23 : जीवन में तरक्‍की करना, आगे बढ़ना, पैसे कमाना हर कोई चाहता है । लेकिन मंजिल तक पहुंचने के लिए की जाने वाली कड़ी मेहनत, वो कितने लोग कर पाते हैं । तूफानों से लड़कर, आंधियों को झेलकर, अंधेरों को चीरकर आगे बढ़ने वाले ही जीवन में अपने सपनों को पूरा कर पाते हैं । वो सपने जो सिर्फ उनके नहीं होते, वो सपने जिनसे कई और सपने भी जुड़े होते हैं । ऐसे ही एक शख्‍स हैं बंधन बैंक के सीईओ और मैनेजिंग डॉयरेक्टर चंद्रशेखर घोष ।

दूध बेचा करते थे घोष
मामूली सी मिठाई की दुकान चलाने वाले के सबसे बड़े बेटे थे चंद्रशेखर घोष । घर-घर दूध बेचकर पिता के काम में हाथ बंटाते थे । एक आश्रम  के खाने से पेट भरता था और दूसरों को पढ़ाकर अपनी पढ़ाई का खर्च निकाल पाते थे । जिंदगी से लड़ते रहे लेकिन हमेशा आगे बढ़ने के लिए । जिंदगी के तूफानों ने उनको रोका नहीं । अपनी एक सोच के बलबूते आज वो एक बड़े बैंक को चलाने में सफल हो पाए हैं । दूध बेचने से लेकर आज अरबपति तक होने का सपना पूरा कर पाए हैं ।

महिलाओं को लोन देने का आइडिया
पश्चिम बंगाल के रहने वाले चंद्र शेखर घोष अपनी सोच और मेहनत से आज एक बड़े मुकाम पर हे । महिलाओं 2-2 लाख के लोन देकर आज वो बैंको की चेन में अग्रणी हैं । देश के 21 प्रतिष्ठित बैंकों से आगे निकलने वाले ‘बंधन बैंक’ के मालिक चंद्रशेखर घोष आज अरबपति हैं । अपनी मेहनत और हुनर से उन्‍होने ये साबित किया है कि कोई भी इस मुकाम तक पहुंच सकता है । मेहनत, लगन, धैर्य ये गुण उसमें होने चाहिए ।

पहली कमाई थी 50 रुपए
घोष बताते हैं कि उन्‍होने अपनी पहली कमाई जो कि तब पचास रुपए थी उससे अपने पापा के लिए एक शर्ट खरीदी थी । आज वह बैंकिंग सेक्टर का एक चमकता हुआ नाम बन चुके हैं । बरसों पहले वो दूध बेचकर अपने घर का गुजारा करते थे, आज ना जाने कितने लोगों के रोजगार का साधन बने हुए हैं । महिला सशक्तीकरण की ओर बढ़ाए उनके कदम ने सिर्फ महिलाओं को ही नहीं बल्कि उनके पूरे परिवार को मजबूत किया है ।

माइक्रोफाइनेंस बैंक का आइडिया
चंद्रशेखर का जन्म सन् 1960 में त्रिपुरा के एक गांव में हुआ था, परिवार बेहद गरीब था, इसलिए चुनौतियों बचपन से ही झेलनी पड़ी । लेकिन पढ़ाई नहीं छोड़ी । दूध बेचकर, ट्यूशन पढ़ाकर वो अपनी पढ़ाई में लगे रहे । 1978 में सांख्यिकी में एमए किया । तभी महिला सशक्तीकरण के लिए काम कर रहे एक संगठन BRAC में काम करना शुरू किया । महिलाएं कैसे मामूली आर्थिक सहयोग से अपना जीवन स्‍तर सुधारने के लिए काम कर रही हे, ये देखकर उन्‍हें कुछ खास करने का विचार आया ।

बंधन बैंक की नींव
घोष के दिमाग में एक ऐसे बैंक का आकार पनपने लगा जो कि ऐसी महिलाओं को आर्थिक मदद दे और इसके बाद छोटे-छोटे उद्योगों का जाल बिछाया जा सके । जिससे देश की भी  तरक्की भी हो सकती है । खूब सोच-विचार के बाद सन् 2001 में अपने रिश्तेदारों से धन जुटा कर उन्होंने पश्चिम बंगाल से बंधन माइक्रोफाइसेंस बैंक की शुरुआत कर दी। इस तरह शुरू में उनकी ‘बंधन-कोनागर’ कंपनी ने पहला आकार लिया।

आज जाना पहचाना नाम
अपनी कंपनी से गरीब महिलाओं को वो दो लाख रुपये तक का अधिकतम लोन देने लगे । साल 2009 में बंधन बैंक,नॉन-बैंकिंग फाइनैंस कंपनी के रूप में रजिस्टर करा दिया गया । उनकी सफलता को देखकर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से साल 2014 में बैंकिंग लाइसेंस भी मिल गया । इसी साल मार्च महीने में बंधन बैंक के स्टॉक को शेयर बाजार ने भी हाथों-हाथ ले लिया । भारत में आज इस बैंक के कुल 430 एटीएम के साथ ही लगभग 887 शाखाएं खुल चुकी हैं।