जहां चाह वहां राह, पक्की रम्मा नाम की ये महिला इस कहावत को चरितार्थ करती हैं, मैला साफ़ कर 30 रुपए कमाने वाली ये महिला आज 80 लाख की मालकिन है । पक्की रम्मा की ये कहानी सभी के लिए उदाहरण है ।
New Delhi, May 24 : आंध्र प्रदेश की पक्की रम्मा को आज मुस्कुराते हुए देखकर यकीन भी नहीं होगा इन्होने कितनी मुश्किलों से अपने जीवन में इस मुकाम को पाया है । 20 साल से जयादा समय तक मैला ढोने वाली पक्की रम्मा ने अपनी जिंदगी को बदला और अपने बेटे को एमबीए और बेटी को टीचर ट्रेनिंग की शिक्षा दिलवाई । जो उन्होने किया, जो उन्होने सहा वो उनके बच्चों को महसूस ना करना पड़े, इसी सोच के साथ पक्की रम्मा आज 80 लाख संपत्त्ति की मालकिन हैं ।
30 रुपए रोजाना से 45 हजार रुपए महीने का सफर
आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गांव की पक्की रम्मा आज सब्जी और फल बेच कर हर महीने 45,000 रुपए कमाती हैं । सिर्फ तेलुगु जानने वाली पककी रम्मा ने हिंदी और इंग्लिश भी सीखी । इतना ही नहीं उन्होन अपनी सफल्ता की ये कहानी देश ही नहीं विदेशों में भी सुनाई है । मैला ढोना इनका पुश्तैनी काम था। बावजूद इसके पक्की रम्मा ने इससे आगे सोचा और अपना ही नहीं कई लोगों का कल भी बदल दिया ।
रांची में हुआ सम्मान
झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने आजीविका दिवस के मौके पर पक्की रम्मा को सम्मानित किया । 11 साल की उम्र में शादी कर पति के घर आई रम्मा उन्हीं के साथ मैला ढेाने का काम करती थी । रोज के 30 रुपए मिलते जिसमें से 10 पति अपनी शराब पर उड़ा देता था । 20 रुपए में परिवार का घर चलाना आसान नहीं था । महज 40 रुपए की साड़ी में ब्याहकर पति के घर आई रम्मा ने अपना नसीब खुद बदलने का फैसला कर लिया था ।
छुआछूत की भी शिकार
रम्मा बताती हैं कि वो नीची जाति की थीं, उस समय समाज में निचली जाति के लोगों को स्वीकारा नहीं जाता था । इसकी शिकार रम्मा भी हुईं । मैला ढोते ढोते स्वयं सहायता समूह से जुड़ी । हफ़्ते में किसी तरह 10 रुपए बचत करने वाली पक्की रम्मा ने समूह से कम ब्याज पर लोन लेकर सब्जी बेचना शुरू किया । पहले छुआछूत के कारण किसी ने उनसे सब्जी तक नहीं खरीदी । फिर अपने गांव से दूर जाकर सब्जी बेचनी शुरू की । जितना समूह से कर्ज लेती उतनी ही सब्जी बेचकर हुए मुनाफ़े से उसे वापस भी कर देती। धीरे-धीरे करके मैंने 12 लाख रुपए कर्ज लिया और पूरा चुका भी दिया।
सपने किए पूरे
मैला ढोने का काम करते हुए रम्मा यही सोचा करती थीं कि चाहे कुछ भी हो जाए उनके बच्चे ये काम नहीं करेंगे । उनकी इसी सोच ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया । बच्चों को अच्छी शिक्षा दी, 6 एकड़ जमीन खरीदी, 5 बीघा का प्लाट खरीदा और कच्ची झोपड़ी से पक्का मकान बनवाया। पक्की रम्मा की जिंदगी में बदलाव की शुरुआत वर्ष 1995 से स्वयं सहायता समूह में जुड़ने के बाद हुई।