करोड़ों का मकान, जबरदस्त अंग्रेजी, फिर भी सड़क किनारे ठेले लगाने को मजबूर, महिला ने पेश की मिसाल

Urvashi Yadav

उर्वशी यादव की शादी गुरुग्राम के एक संपन्न परिवार में हुई, पति अमित यादव एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में अच्छी नौकरी करते थे, बड़ा मकान, सुख-सुविधाओं से भरा-पूरा था।

New Delhi, Jul 28 : आपने कई लोगों के संघर्ष की कहानी पढी और देखी होगी, कईयों से प्रेरणा ली होगी, हालात बदलते रहते हैं, कभी जिंदगी खुशनुमा होती है, तो कभी कुछ समय में ही बद से बदतर भी हो जाती है, ऐसी ही एक कहानी है उर्वशी यादव की, कभी गुरुग्राम में करोड़ों की आलीशान घर में रहने वाली उर्वशी की जिंदगी ने ऐसी करवट ली है, कि उन्हें सड़क किनारे ठेले पर छोले-कुलचे बेचने पड़ रहे हैं।

संपन्न परिवार में शादी
उर्वशी यादव की शादी गुरुग्राम के एक संपन्न परिवार में हुई, पति अमित यादव एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में अच्छी नौकरी करते थे, बड़ा मकान, सुख-सुविधाओं से भरा-पूरा था, 31 मई 2016 तक सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन उसके बाद सब बदल गया, उर्वशी के पति अमित एक दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो गये, उनकी जान तो बच गई, लेकिन डॉक्टरों को कई बार उनकी सर्जरी करनी पड़ी, उन्हें काफी गहरी चोटें आई थी, जिसकी वजह से नौकरी छोड़नी पड़ी, अमित परिवार में इकलौते कमाने वाले थे, नौकरी जाने के बाद कुछ समय तो जमा पूंजी से जैसे-तैसे गुजारा किया, लेकिन आमदनी ना के बराबर थी, लेकिन खर्चे थे, बच्चों की स्कूल फीस, घर का राशन, अमित की दवाई और ना जाने क्या-क्या, जिन्हें बैंक में रखे कुछ पैसों से पूरा नहीं किया जा सकता था।

स्कूल में पढाने लगी
दिन ब दिन हालात बिगड़ने लगे, मूलभूत जरुरतों के लिये भी पूरे परिवार को मोहताज होना पड़ रहा था, भविष्य के बारे में सोचकर भी रुप कांप उठती थी, जिसके बाद उर्वशी ने खुद काम करने का फैसला लिया, वैसे को उर्वशी हाउस वाइफ थी, लेकिन उनकी अंग्रेजी अच्छी थी, जिसकी वजह से उन्हें एक नर्सरी स्कूल में टीचर की नौकरी मिल गई, वो पढाने लगी, लेकिन स्कूल से पैसे बेहद कम मिलते थे, हालांकि वो कहावत है ना डूबते को तिनके का सहारा भी बहुत है, बस यही सोचकर उर्वशी ने पढाना जारी रखा, लेकिन उनकी कमाई से घर खर्च पूरा नहीं पड़ रहा है, अब वो कुछ ऐसा करना चाहती थी, ताकि कुछ ज्यादा पैसे कमा सके, लेकिन उन्हें किसी काम का अनुभव नहीं था, पढाने का काम भी अंग्रेजी की वजह से मिला था, इसके बाद खाना बनाने की कला ही एक ऐसी चीज थी, जिसे उर्वशी अच्छे से जानती थी, उन्होने इसे ही पेशे में बदलने का फैसला लिया।

ठेले लगाने का फैसला
उर्वशी ने फैसला कर लिया, लेकिन छोटी सी दुकान खोलने के लिये भी पूंजी की जरुरत होती है, पैसा होता, तो उर्वशी को काम करनी जरुरत ही नहीं होती, लेकिन उन्होने भी अपने इरादों से इसे पटकनी देने की ठान ली थी, आखिरकार फैसला हुआ कि छोटा सा ठेला लगाएगी, जब उर्वशी ने अपने परिवार को इस बारे में बताया, तो सबने विरोध किया, वो एक पढी लिखी लड़की है, अच्छे परिवार से ताल्लुक रखती है, यूं सड़क पर ठेला लगाना ठीक नहीं है, लेकिन उर्वशी ने कहा कि घर खर्च चलाने के लिये कुछ तो करना ही पड़ेगा।

मेहनत रंग लाई
उर्वशी ने सड़क किनारे ठेला लगाकर छोले-कुलचे बेचना शुरु कर दिया, गुरुग्राम के सेक्टर 14 में उन्होने काम शुरु किया, कड़ी धूप और चूल्हे से निकलती आग चमड़ी झुलसाने को आमदा थी, लेकिन कहते हैं ना समय के मार के आगे ये आग भी ठंडी राख मालूम पड़ रही थी। उर्वशी की मेहनत रंग लाई, उनके छोले कुलचे तो लोगों ने खूब पसंद किये, साथ ही उनके लहजे के भी कायल हो गये, पहली बार अंग्रेजी बोलने वाली लड़की को ठेले पर सड़क किनारे छोले कुलचे बेचते देखा था, ये बात हर तरफ फैलने लगी, दूर-दूर से ग्राहक आने लगे, आलम ये था कि शुरुआत में ही रोजाना दो से तीन हजार रुपये की बिक्री होने लगी।

बिजनेसवुमन बनकर उभरी
उर्वशी ने ना सिर्फ अपने परिवार को संभाला बल्कि एक सफल बिजनेसवुमन के तौर पर उभरी, इस दौरान अमित भी ठीक होकर काम पर लौट गये, धीरे-धीरे चीजें पटरी पर लौटने लगी, उर्वशी ने अपने छोटे से ठेले को रेस्त्रां का रुप दे दिया, जहां आज भी छोले-कुलचे के अलावा खाने-पीने की बाकी चीजें भी मिलती है।