जिस अंग्रेज को उन्हें ढूंढने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, उसी के घर में नाम बदलकर महीनों रहे चंद्रशेखर आजाद

1924 में झांसी जिला मुख्यालय से करीब 14 किमी दूर सातार नदी के किनारे जंगल में चंद्रशेखर आजाद ने अपने आज्ञातवास के डेढ साल बिताये थे।

New Delhi, Jul 23 : देश की आजादी के लिये अपने प्राणों की आहुति देने वाले चंद्रशेखर आजाद का आज जन्मदिन है, आपको बता दें कि आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भंवरा गांव में हुआ था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में आजाद का नाम अग्रणी क्रांतिकारियों में गिना जाता है। आज हम आपको उनसे जुड़ी कुछ बातें रहे हैं। चंद्रशेखर आजाद ने अपनी जिंदगी के दस साल फरार रहते हुए बिताये थे। अंग्रेजों से छिपने के लिये उन्होने झांसी में एक छोटी सी गुफा बनाई थी। जो 4 फीट चौड़ी और 8 फीट लंबी थी। इसमें वो कई-कई दिनों तक छिपे रहे थे।

पुजारी के भेष में रहे
अपने अज्ञातवास के दौरान चंद्रशेखर आजाद झांसी के साथ-साथ एमपी के ओरछा में भी रहे। वो ओरछा के पास सातार नदी किनारे बनी एक छोटी सी कुटिया में रहते थे। कहा जाता है कि यहां रहते हुए उन्होने पुजारी का भेष धारण कर लिया था। मंदिर समेत कुटिया आज भी मौजूद है, यहां के लोग गर्व से बताते हैं कि आजाद ने अपने दिन यहां बिताये थे।

अंग्रेजों से बचने के लिये आ गये झांसी
रिपोर्ट्स के अनुसार साल 1921 में अंग्रजों ने उन्हें 25 बेतों की सजा सुनाई थी। फिर बाद में 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड के बाद अंग्रेजी हुकूमत उनके पीछे पड़ गई थी। उनका नाम अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की हत्या, काकोरी कांड और असेंबली बमकांड में भी आया था, जिसके बाद अंग्रेजों से बचने के लिये वो झांसी आकर रहने लगे थे।

झांसी में थे भाई जैसे दोस्त
बीकेडी डिग्री कॉलेज में प्रिंसिपल डॉ. बाबू लाल तिवारी ने बताया कि चंद्रशेखर आजाद ने अपने जीवन के चार बहूमूल्य साल झांसी में गुजारे थे, यहां वो अपने क्रांतिकारी दोस्त रुद्रनारायण सक्सेना के घर में रहते थे। साल 1925 में झांसी में उन्होने पार्टी का गठन किया था। पार्टी गठन किये जाने के दौरान ही आजाद और रुद्रनारायण की मुलाकात हुई थी। दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी, चंद्रशेखर उन्हें अपना भाई मानने लगे थे। यहां रहते हुए कुछ ही समय में चंद्रशेखर उनके घर के सभी सदस्यों से पूरी तरह घुल-मिल गये थे।

तलघर में रहते थे
अंग्रेजों की छापेमारी के बचने के लिये आजाद एक कमरे के नीचे बने तलघर में रहते थे, यहां वो रुद्रनारायण, खनियाधाना के महाराज कहलक सिंह जूदेव, सचिंद्रनाथ बख्शी, महाराज बदरीबजरंग बहादुर सिंह, विश्वनाथ समेत कई क्रांतिकारियों के साथ बैठकर अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की योजना बनाते थे। अब इस घर को बंद कर दिया गया है।

भेष बदलने में माहिर थे आजाद
कहा जाता है कि 1924 में झांसी जिला मुख्यालय से करीब 14 किमी दूर सातार नदी के किनारे जंगल में चंद्रशेखर आजाद ने अपने आज्ञातवास के डेढ साल बिताये थे। इस दौरान उन्होने यहां एक हनुमान मंदिर की स्थापना भी की थी। इस मंदिर के मौजूदा पुजारी प्रभुदयाल ने बताया कि यहां आने के बाद आजाद उस अंग्रेज अधिकारी के यहां ड्राइविंग की थी, जिसको उन्हें तलाश करने के लिये लगाया गया था। वो 8 महीने तक उसके यहां गाड़ी चलाते रहे, और खुद की तलाश करवाते रहे।

नाम बदलकर रहे
बताया जाता है कि अंग्रेज के यहां आजाद हरिशंकर के नाम से रहे, जब अधिकारी को उन पर कुछ शक हुआ, तब तक वो वहां से भाग निकले और पुजारी का वेश धारण कर लिया। उन्होने अंग्रेजों से बचने के लिये अपने हाथ से एक गुफा खोदी थी, जिसका इस्तेमाल वो भागने के लिये करते थे और उन्होने एक कुंआ भी खोदी थी, जिसका वो पानी पीते थे। अगर अंग्रेज मंदिर के पास पहुंचते थे, तो वो इसी गुफा से होकर बाहर निकल जाते थे। अब इसमें दरारें पड़ चुकी है।