IIM टॉपर करोड़ों की नौकरी छोड़ खोली सब्जी की दुकान, ये है 22 रुपये से करोड़ों तक के सफर की कहानी

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कौशलेन्द्र ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब वो अहमदाबाद से पटना आये थे और सब्जी की दुकान खोली थी, तो उनके फैसले से हर कोई हैरान था।

New Delhi, May 27 : अगर आप भी किसानी पृष्ठभूमि से होंगे, तो आपके मन में बार-बार ये सवाल आता होगा, कि आखिर खेत से आपकी कॉलोनी या सोसाइटी तक आते-आते सब्जियां इतनी महंगी क्यों हो जाती है ? ये सवाल आईआईएम अहमदाबाद के एक टॉपर के मन में भी आता था। इसलिये एमबीए में गोल्ड मेडल हासिल करने के बाद वो किसी कंपनी में मैनेजर या सीईओ बनने के बजाय वो काम किया, जिससे लाखों लोगों के लिये रोल मॉडल बन गये। किसान के बेटे ने एक कंपनी खड़ी कर दी, जिससे ना सिर्फ वो करोड़पति बन गये, बल्कि 22 हजार से ज्यादा किसानों को भी लाभ मिला।

करोड़ों का पैकेज ठुकरा सब्जी की दुकान खोली
देश के सबसे प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान आईआईएम अहमदाबाद से पढाई करने के बाद कई मल्टी नेशनल कंपनियां उनका इंतजार कर रही थी, kaushlendra5लेकिन उनके मन में कुछ और ही चल रहा था। कौशलेंद्र के ज्यादातर साथी देश के दूसरे कोनों और विदेश चले गये। जबकि गोल्ड मेडलिस्ट कौशलेन्द्र डिग्री हासिल करवे के बाद अहमदाबाद से अपने राज्य बिहार लौट आये थे। यहां पर उन्होने सब्जी की दुकान खोली।

पहले दिन सिर्फ 22 रुपये की बिक्री
कौशलेन्द्र ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब वो अहमदाबाद से पटना आये थे और सब्जी की दुकान खोली थी, तो उनके फैसले से हर कोई हैरान था, kaushlendra6पहले दिन उन्होने 22 रुपये की सब्जी बेची थी। लेकिन साल 2016-17 में उनकी कंपनी का टर्नओवर साढे पांच करोड़ रुपये का है, उनकी कंपनी से करीब 22 हजार किसान जुड़े हुए हैं।

अलग फैसला लिया
कौशलेन्द्र (36 साल) ने बताया कि पढाई करने के बाद नौकरी करना सबसे आसान काम था, लेकिन मेरे मन में कुछ और ही चल रहा था, मैं चाहता था कि kaushlendra2कुछ ऐसा करुं कि जिससे बिहार का पलायन रुक सके। मैं किसान परिवार से ताल्लुक रखता हूं, इसलिये मैं ऐसा काम करना चाहता था, कि जिससे छोटे किसानों का भला हो। मैंने छोटे किसानों से सब्जियां खरीद कर शहरों में बेचना शुरु किया ।

किसानों को नहीं मिलती अच्छी कीमत
उन्होने आगे बताते हुए कहा कि मैंने देखा था कि छोटे और मंझोले किसान सब्जियां उगाते हैं, लेकिन उन्हें सही कीमत नहीं मिलती थी। kaushlendra4जबकि वही सब्जी शहरों में कई गुना महंगी कीमतों में बिकती थी। मेरा आइडिया शुरु से क्लीयर था, कि बिचौलियों को हटाओ और अच्छी और ताजी सब्जियों गांव से उठाकर शहरों में बेचो, जो फायदा होगा, वो किसान और मुझे मिले।

आसान नहीं था काम
कौशलेंन्द्र के अनुसार ये काम इतना आसान नहीं था, पहले तो एमबीए पढा हुआ लड़का सब्जी बेचेगा, फिर किसानों को इस बात के लिये तैयार करना, और आखिर में सब्जी खरीदने वाला कस्टमर ढूंढना। गोल्ड मेडेलिस्ट ने कहा कि किसानों की सोच बदलना इतना आसान काम नहीं था। kaushlendra1शुरुआत में बात करने के बाद दो-तीन किसान आगे आये, पहले दिन कुछ सब्जी लेकर पटना पहुंचे, तो सिर्फ 22 रुपये की बिक्री हुई। सब्जी खरीदी कितने की थी, ये याद नहीं है, लेकिन बिक्री 22 रुपये की हुई थी। इस बात से मैं बहुत खुश था, कि आखिर कोई तो खरीदने आया।

छोटे किसानों से मिले
कौशलेन्द्र ने कहा कि एक वो दिन था और एक आज का दिन है, आज उनके साथ 22 हजार से ज्यादा किसान जुड़े हुए हैं, 85 लोगों का स्टाफ है, kaushlendra3कौशलेन्द्र ने इस काम को शुरु करने के लिये शुरुआत में छोटे सब्जी उत्पादक किसान और छोटे विक्रेताओं के पास गये। उनसे मिलकर उनकी परेशानी समझी, उसके बाद उन्होने इस क्षेत्र के लिये रणनीति बनाई और आगे बढते गये।