चमचमाती पेरिस सिटी की एक और दुनिया, इन झुग्गियों की सच्‍चाई हैरान कर देगी

तस्‍वीरें देखकर धोखा मत खाइएगा । भारत नहीं ये शानदार पेरिस सिटी के ही एक कोने की तस्‍वीरें हैं । जानिए कौन रहता है यहां …

New Delhi, Oct 28 : भारत के शहरों में बनी झुग्गियां अकसर आपने देखी होंगी । इन्‍हें देखकर आपको लगता होगा कि कैसा देश है हमारा । साफ-सफाई के मामले में भारत में अभी बहुत कुछ होना बाकी है । अगर आकपेां लगता है कि ऐसी हालत सिर्फ हमारे भारत की है तो आप गलत हैं । विदेशों में भी ऐसे कई शहर हैं जिनके दो चेहरे हैं । एक ओर चमचमाती इमारते हैं तो दूसरी ओर ऐसे स्‍लम बसे हैं जहां लोगों के पास मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं ।

फ्रांस की चमचमाती पेरिस सिटी की तस्‍वीरें
ये तस्‍वीर देखकर आप सोच रहे होंगे कि पेरिस में भी ऐसी बस्‍ती है जहां लोग बिना सुख सुविधाओं के रहते हैं । तो हम आपको बताते हैं पेरिस के आउटर में पुरानी रेलवे लाइन के पास बसी इस बस्ती में 100 या 200 लोग नहीं बल्कि 16 हजार से ज्यादा लोग रहते हैं । यहां रहने वाला हर शख्‍स आम सुविधाओं से दूर हैं । वो अपनी रोजमर्रा की जिंदगी के लिए भी लड़ रहा है और किसी तरह से खुद का और अपने परिवार को पाल रहा है ।

को’ला पटीट सेंटर हट्स के नाम से जानी जाती है ये बस्‍ती
बुनियादी सुविधाओं से दूर पेरिस सिटी के एक कोने में बसी ये बस्‍ती 16 हजार लोगों का आशियानी है । इस बस्‍ती में वो लोग रहते हैं जिनके पास पैसे नहीं है और वो अपना जीवनयापन करने के लिए छोटे-मोटे काम और मजदूरी करते हैं । वो लोग जिन्‍हें पेरिस की चमक धमक देखने तक की इजाजत नहीं, उनकी जेब में इतना पैसा भी नहीं कि वो अपने लिए एक छत तक का जुगाड़ कर सकें ।

‘रोमा’ कम्‍यूनिटी के लोग हैं सभी
अपमान और भेदभाव का शिकार हो रहे ये लो ‘रोमा’ कम्युनिटी के बताए जाते हैं । पूरे यूरोप में ये लोग फैले हुए हैं । फ्रांस की राजधानी पेरिस सिटी में रोजगार के छोटे – मोटे साधन मिलने की वजह से यहां इनकी संख्‍या ज्‍यादा है । घुमक्कड़ होने के चलते इनके समूह जिप्‍सी समूह भी कहलाते हैं । हालांकि ये सभी इन्‍हीं बस्तियों में रहते हैं जहां ना लाइट है ना पीने का पानी ।

साफ-सफाई जैसे छोटे-मोटे काम करते हैं ये लोग
इस बस्‍ती में रहने वाले लोग ना तो पढ़े लिखे हैं और ना ही इन्‍हें सरकार की ओर से विशेष सुविधाएं प्राप्‍त हैं । यहां के लोग कारों की साफ-सफाई करके, मजदूरी और छोटे-मोटे धंधे करके अपना जीवन यापन करते हैं । इन हट्स में रहने वाले लोग अपने बच्‍चों को स्‍कूल तक नहीं भेज पाते । जिन इलाकों में ये रहते हैं वहां गंदगी का अंबार रहता है । कुछ एनजीओ अब इनके लिए आवाज उठा रहे हैं ।

भारतीय मूल के हैं ‘रोमा’ कम्‍यूनिटी के लोग
‘रोमा’ समुदाय के इतिहास के बारे में मिली जानकारी बताती है कि ये लोग मूल रूप से भारत के हैं। ‘करंट बायोलॉजी’ नाम की एक मैगजीन में छपे इस शोध में बताया गया कि ये समुदाय 15वीं सदी में भारत से ईरान पहुंचा था । ये भारत के उत्तर और उत्तर पश्चिम इलाकों से संबंध रखते थे । ईरान के रास्ते ही ये लोग यूरोप के अलग-अलग देशों में पहुंचे और फैलने लगे । मूल रूप से हिंदू ‘रोमा’ कम्‍यूनिटी धीरे-धीरे बंटनी शुरू हुई तो लोगों ने अलग-अलग धर्म अपनाने शुरू कर दिया ।

पूरे यूरोप में एक करोड़ से भी ज्‍यादा की आबादी
आपको जानकर हैरानी होगी कि यूरोप की कई सिटी में ‘रोमा’ समुदाय के लोग बसे हुए हैं और इनकी संख्‍या पूरे यूरोप में अब 1 करोड़ से भी ज्‍यादा हो गई हैं । इनकी आबादी को लेकर अब तक कोई सही आंकड़ा उपलब्‍ध नहीं है । इन लोगों का पूरे यूरोप में फैले होना सरकार के लिए चिंता की बात है । 900 साल पहले ये लोग ग्रीस, ‘रोमा’निया, बुल्गारियास, यूगोस्लाविया के रास्ते यूरोप पहुंचे थे ।

यूरोप के इन हिस्सों में रहते हैं ‘रोमा’?
‘रोमा’ कम्‍यूनिटी के लोग सेंट्रल और ईस्टर्न यूरोप के स्वीडन, स्पेन, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली, तुर्की, फ्रांस, ग्रीस, बुल्गारिया, यूगोस्लाविया, मैसेडोनिया, स्लोवाकिया, ‘रोमा’निया, सर्बिया और हंगरी में रहते हैं। इन सभी इलाकों में इनकी संख्‍या 10-10 हजार से भी ज्‍यादा है । सिटी के किसी भी कोने में हट्स बनाकर रहने वाले इन लोगों को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं दी जातीं ।

आज तक नहीं मिला बराबरी का दर्जा
करीब 600 सालों से यूरोप में रहने के बावजूद इस सुमुदाय के लोग अपने अस्तित्‍व की लड़ाई लड़ रहे हैं । इन्‍हें ना तो बराबरी का दर्जा मिला और ना ही नागरिकता । ये लगातार भेदभाव का शिकार होते रहे हैं । सिटी के लोग इन्‍हें चोर और भिखारी समझकर दुत्कारते हैं । इनके साथ अछूतों जैसा बर्ताव होता है । कोई शहरों में इन लोगों को घर देना पसंद नहीं करता और ना ही कोई नौकरी मिल पाती है ।